हद से ज्यादा
हद से ज्यादा मोहब्बत सज़ा बन गई
ज़िन्दगी एक कड़वी दवा बन गई !
इसको जितना पिया मर्ज़ बढता गया
आरज़ू मेरे तन का कफ़न बन गई !!
वो न बदले ये दुनिया बदलती गई
लब से फिर भी दुआएं निकलती गई !
आसुओं की जो बरसात होने लगी
देह के साथ मन भी भिगोने लगी
अबकी पतझड़ में सावन दिखाई पड़ा
बिजलियां मेरे दिल पे कड़कती गई
हम भी खामोश दिल में सिसकते रहे !
मुफलिसी की हकीकत अदा बन गई !
ऋषि राज शंकर " मुफलिस"
०५/०३ २०१२ प्रातः ८:४५