दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Friday, July 25, 2014

सुख दुख की परिभाषा
अब तक कोई न दे पाया
जिसने जैसा समझा इनको
वैसा ही लिख पाया
मैंने भी थोड़ी सी कोशिश
की है लिख पाने की
सुख दुख मन का फेर है
प्यारे इसको समझाने की
सुख में कभी न तुम इतराना
दुख में न घबराना
ये तो केवल धूप-छांव है
रहता आना जाना
दुख में भी गर सुख ढूंढ़ोगे
मस्त रहोगे भाई
मस्त रहोगे तब जीवन में
स्वस्थ रहोगे भाई
अपनी तो मोटी बुद्धि में
इतना समझ ही आया
ये अपने संगी साथी है
इनको गले लगाया
       ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       २२ जुलाई २०१४, रातः१०बजे

जब जिंदगी पे मेरी
मेहरबान हो गए
दिल में उतर के मेरे
दिलोजान हो गए
करनी थी बेवफ़ाई ही
जब इश्क में तुम्हें
क्यूं तुम हमारी मौत का
सामान हो गए
अब भूलना भी तुमको
तो आसान नहीं है
जिंदा तो हूं पर रुह में
मेरी जान नही है
उम्रे सफ़र कैसे कटे
तन्हाईयों में अब
जब रास्तों की जेहन में
पहचान नहीं है
इंसान अपनेआप में
कितना सिमट गया
बस जानवरों की भीड़ है
इंसान नहीं है

      ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       २४ जुलाई २०१४, प्रातः ११ बजे

किस्मत से लड़ रहा हूं मैं
हर रोज़ नई जंग
इस बात का किसी को भी
एहसास नहीं है
मुस्करा कर जिंदगी का
लुत्फ ले रहा हूं
मंजिल का पता जबकि
मेरे पास नहीं है
अधेरों के बीच जुगनुओं
को खोजता हुआ
ये जानते हुए की कोई
आस नहीं है
मैं यूं ही भटकता रहा
मंजिल की खोज में
रहमत से तेरी कोई भी
मायूस नहीं है
परवरदिग़ार आखिरी
उम्मीद तुमसे है
'मुफलिस'को, किसी और पे
विश्वास नहीं है

     ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       २५ जुलाई २०१४, प्रातः११ बजे

Tuesday, July 22, 2014

भगवन बोले चल नारद
अब धरा घूम के आते है
बहुत तरक्की हुई धरा पे
अवलोकन कर आते है
नारद और विष्णु जी ने
तब ब्राह्मण रुप बनाये
एक मिनट में स्वर्गलोक से
वो यू पी में आये
यूपी का वो हाल देख के
लज्जित हो गए भाई
रामराज्य सोचा दोनों ने
उल्टी गंगा पाई
नारी के फटते वस्त्र यहां
रोज़ अस्मत होती तार तार
पिता पुत्र ने मिलके कैसा
कर दिया बंटाधार
कर दिया बंटाधार
समय कैसा ले आये
जाने कितने दुशासन
ये रोक न पाये
हर चौराहे औ नुक्कड़ पे
गुंडा गर्दी पाया
इतना कुछ देखा भगवन ने
उनका सिर चकराया
तब एक पुलिसवाले ने
उनको अपनेपास बुलाया
दुखी ब्राहमण जानके उसने
जी भरकर धमकाया
बोला तुमपे चार्ज लगाके
अंदर कर दूंगा
जेल अगर नहीं जाना तो
रुपया थोड़ा लूंगा
अजब़ मुसीबत आन पड़ी तो
विष्णु जी घबराये
बोले नारद भागो जल्दी
क्यों यूपी ले आये
आगे जब भी हम घूमेंगे
और कहीं ले जाना
भूले से भी इस प्रदेश में
वापस मत ले आना

     ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       २२जुलाई २०१४, प्रातः११ बजे

Thursday, July 17, 2014

बहुत दिनों से सोच
रहा था एक अनोखी बात
क्यों औरत ही मांग भरे
और व्रत रखे दिन रात
व्रत रखे दिन रात
पति कैसा भी पाया
क्यों पति को परमेश्वर माना
क्यों सर्वस्व लुटाया
नारी जनम पुरुष को देती
तिरस्कार भी पाती
सारी पीड़ा को सह लेती
पर कुछ न कह पाती
पर नारी को देख पुरुष
जब मन ही मन मुस्काये
अपने पौरुष पर इतरा कर
छेड़छाड़ कर जाये
नारी अगर करे ऐसा तो
घोर पाप कहलाये
जाने किसने इस समाज में.
ऐसे नियम बनाये
नारी नहीं मोम की गुड़िया
वह बलशाली है
वक्त पड़े तो बने सिंहनी
वो दुर्गा काली है

      ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       १६ जुलाई २०१४, प्रातः१०बजे

यमराज परेशां होकर इक दिन
चित्रगुप्त से बोले
पाप पुण्य आधार मान के
कितने खाते खोले
स्वर्ग नर्क में आज तलक की
संख्या सही बताओ
नर्क में बढ़ती आबादी का
कारण कुछ बतलाओ
चित्रगुप्त ने जल्दी से फिर
लैपटाप को खोला
कुछ गणना करने के बाद
हतप्रभ होकर बोला
भगवन स्वर्ग लोक में सारी
सीट पड़ी हैं खाली
नर्क ठसाठस भरा पड़ा है
लीला अजब़ निराली
मानव कितना बौराया है
स्वर्ग न इसको भाये
दो नंबर के धंधे करके
जीवन स्वर्ग बनाये
मानव की है यही धारणा
जीवन स्वर्ग बनाओ
सातों पीढ़ी ऐश करें
फिर भले नर्क में जाओ
चित्रगुप्त ने ये कारण
यमराज को जब बतलाया
चक्कर खा गए काल देवता
कुछ भी समझ न आया
नर्क लोक आने वालों की
लम्बी हुई कतार
काल देवता नर्वस हो गए
बेबस और लाचार,
बेबस और लाचार,
नर्क कैसे बढ़वायें
नर्क में आने वालों की
ये भीड़ कहां ले जायें
काल देवता की बुद्धि में
जब कुछ समझ न आया
स्वर्ग लोक के दरवाजे पे
नर्क लोक लिखवाया

   ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
    १६जुलाई २०१४, रातः१०.५०बजे

सारे कुत्तों ने मिलकर
एक आम सभा बुलवाई
आमसभा में सर्वसम्मत से
बात निकल ये आई
कैसे जीवन हो सुखमय,संसार हमारा
हो मानव से बेहतर जीवन
यही हमारा नारा
अलग अलग सारे कुत्तों ने
अपनी राय बताई
पर इक बूढ़े से कुत्ते की
बात समझ में आई
बूढ़े कुत्ते ने सबको
जब ये समझाया
हम मानव से बेहतर हैं
ये राज़ बताया
कि जब जब वफ़ा की
चर्चा होती,कुत्ते बने मिसाल
कुत्तों से मानव घटिया है
कुत्ते नमक़ हलाल,
कुत्ते नमक़ हलाल
नमक़ का फर्ज़ निभाते
इंसानो के जैसे ये
गद्दारी न कर पाते
मानव आज स्वंय कर रहा
कुत्तों सा व्यवहार
कुत्तों जैसी मौत मर रहा
कितना है लाचार,
कितना है लाचार
समय ये कैसा आया
कुत्तों ने मानव से अछ्छा
खुद अपने को पाया

     ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
       १६ जुलाई २०१४, प्रातः१०बजे

कल भगवान स्वप्न में आये
बोले मुफ़लिस यार
तू भी मुफ़लिस,मैं भी मुफ़लिस
दोनों हैं बेकार
दोनों हैं बेकार,करें क्या
समझ न आता
देख धरा का हाल
हमारा जी घबराता
मैं बोला भगवन क्या लेगें
चाय लाऊं या कोला
वो बोले ले आओ धतूरा
या फिर भांग का गोला
भांग का गोला खाकर
प्रभू ने ऐसी ली अंगड़ाई
मेरी साधारण आखों को
दिव्य द्रष्टि दिलवाई
भगवन बोले,दिव्य द्रष्टि से
देख धरा का हाल
भाई-भाई का कत्ल कर रहा
अज़ब गज़ब है हाल
नारी की अस्मत के सौदे
यहां रोज़ ही होते
अपने कुकर्मों पापों को
गंगा जल से धोते
खुद रिश्वत लेते देते हैं
मुझको भी न छोड़ा
सवा किलो लड्डू की रिश्वत
कहीं नारियल फोड़ा
इंसानों का स्तर कितना
गिरता जाता भाई
वहशी और दरिंदे बन गए
बन गये हैं दंगाई
बन गए हैं दंगाई
लहू की खेलें होली
बात बात पे चलते चाकू
और चलती है गोली
मेरे ही मंदिर मे आकर
मुझको ही ठग जाते
मेरा मुकुट और जेव़र को
चोरी कर ले जाते
अब तक मेरा ही
कुछ भय था
वो भी रहा न बाक़ी
बेईमानी डंका बजता
गैरत रही ना बाक़ी
क्या- क्या मैं
दिखलाऊं तुमको
कुछ तो शरम करो
मेरी दिव्य द्रष्टि को
बेटा वापस तुरंत करो
मैं चलता हूं स्वर्ग लोक
तुम अपनी फिक्र करो
नर्क बनाओ इस धरती को
इसमें ऐश करो

    ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
    १५जुलाई २०१४, रातः१०.४५बजे

Tuesday, July 15, 2014

तीन अक्षर का शब्द जुदाई,
कितनी पीड़ा दे जाता है
आंख अश्क से भर जाती है
गला रुंध कर भर आता है
फिर तन्हाई जन्म लेती है
रातों में सिसकारी भर के
आंखों से आंसू का दरिया
पानी बनकर बह जाता है 
खामोशी की चादर ओढे
हर रात अमावस लगती है
जब पूनम का चांद बहक के
बादल में छिप जाता है

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२६ जून २०१४ रात ११.४५
अछ्छे दिन आने में यारों, थोडा वक्त लगेगा
बच्चा नौ महीने में होगा,जल्दी कैसे होगा?
सब्र का फल मीठा होता है,याद रखो ये बात
मोदी जी ने पारी की है ,धुआंधार शुरुवात
पहले कचरा साफ करेंगे,तभी बनेगी बात
सब्र करो और पांच साल का पहले वक्त बिताना
अगर तरक्की न दिख पाये,आगे मत जितवाना
अछ्छे दिन कैसे आयेंगे,पच्चीस दिन में यार
जब पैंसठ बरसों के शासन में,हुआ देश लाचार
हुआ देश लाचार,पडोसी आंख दिखाते थे
अपने वीर जवानों के सिर काट ले जाते थे
तब क्यों हम खामोश रहे,और कुछ न बोले
जब हर महीने मंहगाई बढी,घोटाले झेले
कर सकते हो आज अगर ,ये काम करो
लोकतंत्र में जनादेश का मान करो
विश्वास रखो की अछ्छे दिन फिर आयेंगे
पांच साल में हम कुछ कर दिखलायेंगे

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२५ जून २०१४ रात १०.४५
घोर निराशा
कभी कभी जब घोर निराशा,जीवन में आ जाती है!
सावन उमड़े बिन मौसम के,आखेँ तब भर जाती है!!
शबनम भी तब आग के गोलों जैसी, तन पे लगती है!
दिल कुछ डूबा सा रहता है, मायूसी छा जाती है!!
कोई न छेड़ें , कोई न बोले, जी तब ऐसा करता है!
तन्हाई के आँगन में जब, यादें फिर घिर जाती है!!
“”मुफलिस””थक कर चूर हुए हम,जाने कितना चलना है!
साँसे उखड़े सी लगती हैं, बैचैनी बढ़ जाती है!!

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
26/03/2013
कल क्या होगा पता नहीं ?
मैं तो केवल आज जी रहा, कल क्या होगा पता नहीं
किस रास्ते मुड़ जाये ज़िंदगी कल क्या होगा पता नहीं!!
जोड़-तोड़ में आज लगा हूँ, तिनका-तिनका जोड़ रहा
कब छ्प्पर उड़ जाये मेरा, कल क्या होगा पता नहीं!!
जाने कितनी सुबह गुज़र गई, और कितनी ही शाम ढली
फ़िर क्या नया सवेरा होगा, कल क्या होगा पता नहीं !!
क्या जाने कितना चलना है , दूरी कितनी बाकी है
दौड़ सको तो आज दौड़ लो, कल क्या होगा पता नहीं !!
चेहरे को शीशे में देखो , पर इतना इतराओ मत
कितनी झुर्री साफ़ दिखेगी, कल क्या होगा पता नहीं !!
मैं “मुफ़लिस” दुनिया में आया,और “मुफ़लिस” ही जाउँगा
“मुफ़लिस” जीवन रहा हमारा, कल क्या होगा पता नहीं!!

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
14/04/2013
कहानी खुद की

जब भी मिलती है थोड़ा दूर खिसक जाती है
मेरी मंज़िल मेरे हाथों से फ़िसल जाती है !!
कई बार आके वो ड्योढी से मेरी लौटी है
उसकी आहट से मेरी नींद उचट जाती है !!
फ़िर भी ख्वाबों यूँ पलकों पे सजा रखा है
जिनकी ताबीर में इक उम्र गुज़र जाती है !!
छुपाउँ किस तरह कुछ भी न समझ आता है
आँख तन्हाई में चुपके से बरस जाती है !!
ज़िन्दगी मिलने में कुछ वक्त लगा करता है
मौत आते हुए बिल्कुल नहीं शर्माती है !!
कहानी खुद की, कैसे मैं सुनाऊँ “मुफ़लिस’
ऐसे हालात में जब खुद पे हँसी आती है !!

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
17/04/2013
किससे दिल की बात कहूँ, उलझन और ज़ज़्बात कहूँ, ,
उजड़ा- उजड़ा हर मन्ज़र है, हर ज़र्रा खामोशी है, 
तन्हा-तन्हा इन रातों की कैसी है बारात कहूँ, 
रात अमावस जैसी काली, और सुबह का पता नहीं 
उखड़ रही सांसों से कैसे, ये बोझिल लम्हात कहूँ !!!!!
क्यों ?

रोज़ उठ्ता हूँ सुबह को, इक नई आशा के साथ
शाम होने तक चटक कर चूर हो जाती है क्यों ?
मंज़िलों की ओर जब हर कदम बढ्ता है तब
मंज़िलें मुझसे छटक कर दूर हो जाती है क्यों ?
फिर भी दिल में है जुनूँ, इक हौसला उम्मीद है
मंज़िलों की ओर,दिल में आग लग जाती है क्यों ?
हर मुक्ददर की इबारत लिखने वाला एक है, 
पर उसे पढने की हसरत मन में जग जाती है क्यों ?
कल सुबह सूरज की किरणें,फिर धरा पे आयेंगी
रात कितनी ही घनी हो, फिर से कट जाती है क्यों ?
हम अकेले ही चले थे, अब सुकूँ की चाह में
जाने कैसे साथ में ये भीड़ लग जाती है क्यों ?

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
09/02/2014
हे ईश्ववर अब मुझे उठा ले, 
अब कोई अरमान नहीं
बहुत जी लिया इस जीवन को, 
अब जीना आसांन नही
किससे दिल की बात कहें 
जब कोई न सुनने वाला है
जिनको मेरी सुनना था
जब उनका मुझपे ध्यान नहीं
ना कोई शिकवा बाकी है
कोई गिला ना बाकी है
लब पे केवल खामोशी है
और कोई मुस्कान नहीं
'मुफलिस' सारी उम्र जिया मैं
मुफलिस ही मर जाउंगा
मुफलिस तो मुफलिस रहता है
और कोई पहचान नहीं

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
७ जून २०१४
यकींन की दीवार,दरकती ही जा रही
जिंदगी हाथों से फिसलती ही जा रही
मौला, मेरे अब रास्ता,तू ही बता कोई
क्यों जिंदगी ये आज भटकती सी जा रही
बैचैन ह्रर इक शख्स है,परेशान रुह है
ख्वाहिशें सीने में पिघलती सी जा रही
मतलबी ह्रर शख्स है,इस कायनात में
या खुदा ये दुनिया सिमटती ही जा रही
फासले कुछ इस तरह से बढ रहें है अब,
परछाईं अपने आप से अब दूर जा रही

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४
इत्तिफाकन वो अचानक मिल गये जब
बेइरादा बेजुबां से हो गए हम
थी शिकायत से भरी उनकी निगाहें
अनकहे शब्दों की भाषा पढ़ गए हम
मौन की अभिव्यकित्त पीडा से भरी थी
सांस रोके दर्द सारा पी गए हम
फिर धुंधलके यादों के छाने लगे थे
और ठगे से जड़ के जैसे हो गए हम
क्या बतायें,खेल क्या किस्मत ने खेला
वक्त से मजबूर कितने हो गए हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४, रात१०.४५
तेरी यादों के मंज़र अब मेरी आखों मे रहते हैं
ये तो वक्त और हालात थे की दूर हो गए
तेरी सांसे मेरे सीने में अब भी यूं धड़कती हैं
कि तुमसे क्या बतायें किस कदर मजबूर हो गए
बिछुड़के तुमसे, किस क्रद परेशान हम भी हैं
किसी का नाम लेता हूं ,तुम्हारा नाम आता है
तुम्हारे अक्स को जेहन से अपने जब मिटाता हूं
उमड़के फिर वो जेहन से मेरी आखें भिगाता है
ना जिंदा हूं ना मरता हूं,पडी मंझधार में सांसे
तड़पता हूं,मचलता हूं,कभी मैं छटपटाता हूं
कि अबतो आइने से इस क्रद डरने लगा हूं
मैं अपनेआप से ही ह्रर समय नज़रें चुराता हूं

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
९ जून २०१४, रात११
किस्मत भी मेरी मुझपे निगहबान हो गई
हर शाम जिंदगी की तेरे नाम हो गई
गज़लें लिखीं जो हमने तनहाईयों में तब
पैमानों में ढलके वो सरेआम हो गई
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
१३ जून २०१४, रात १०.४५
मोहब्बत में कशिश हो औ इरादे पाक़ होने चाहिये
न सुकूं हो,और जुनूं हो आग होना चाहिये
शाहजहां कहलाने को,दीवानगी सा इश्क हो,
ताजमहल बनवाने को मुमताज़ होना चाहिये
सुर्ख मेंहदी हाथ में उनके रचाना है अगर
मेंहदी में मेरे लहू की बूंद होना चाहिये
ख्वाब़ पूरा हो सकेगा,मंजिलों की खोज का
बस रास्तों की जेहन में पहचान होना चाहिये
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
१३ जून २०१४, रात १०.४५
आगाज़ हो चुका है,बिगडे हालात बदलने का
कांगेरस के कुशासन इतिहास बदलने का
अछ्छे दिन अब आयेंगे पर वक्त लगेगा कुछ
जर्जर हो गये सिस्टम के अंदाज बदलने का
आगाज़ जरा सा कड़वा है,बर्दाश्त करेंगे हम
लुटी तिजोरी,लुटे देश की चाल बदलने का
बिगडी दशा सुधरने में कई बरस लगेंगे अब
अंजाम सुहाना होगा तब,सरकार बदलने का

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२४ जून २०१४ रात् ११ बजे
क्या? फिर से जीवन में कभी मधुमास होगा
मेरे हाथ में तेरे हाथ का अहसास होगा ?
हम तो तन्हा ही खडे हैं मोड़ पर कि
फिर तेरे आने का कुछ आभास होगा
क्या पता कि कितनी अब सांसे बची हैं
कब जिंदगी का मौत से परिहास होगा?
मैं किसी से क्यूं कहूं कि साथ चल
मेरे साथ में उसे दर्द का अहसास होगा ?

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२८जून २०१४ रात ११.३०
दिल मेरा आज फिर इक डर से क्यूं घबराया है
क्या फिर से नया जख्म मिलने वाला है ?
यूं तो हर लम्हा ही तन्हाई का अहसास है
क्या फिर से कोई साथ चलने वाला है ?
हर नया रिश्ता मुझे जख्म देके जाता है
बड़ा अजीब, ये रिश्ते बनाने वाला है
मुक्कदर हर किसी का हाथ में अपने दबाये
वो जादूगर है, ये दुनिया चलाने वाला है

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२८जून २०१४ रात ११.५०
पीड़ा में कितना आंनद मुझे आता है 
मन का बोझ छलक,आंखों से बह जाता है 
जब जब कोई घाव हदय में रिसता है 
जेहन में तेरा ही अक्स उभर आता है 
याद करो वो दिन,जब साथ चले थे हम
वो लम्हा कितना सुकून सा दे जाता है 
वो शरमाना,वो इतराना,वो तेरा हंसना
यादों के दर्पण में ये सब,साफ नज़र आता है 
कितना बेबस वक्त के आगे,हम मजबूर हुए
बस करता हूं अब लिखना,न और लिखा जाता है

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
३०जून २०१४ रात १०.५०
अब आंसू को पलकों में यूं न छिपाओ
जमाने की खातिर,न यूं मुस्कराओ
हमें सब पता है ,तेरे दिल का आलम
न कोई बहाना अब हमसे बनाओ
ये उल्फत में कैसी सजा हमने झेली
न हम चैन पायें ,न तुम चैन पाओ
ये कैसा मकाम इस मोहब्बत में आया
न हम मुस्करायें,न तुम मुस्कराओ
कुछ तो कशिश है,मोहब्बत में अपनी
गुनाहों की मेरे. सजा तुम भी पाओ

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
४ जुलाई २०१४, प्रातः८ बजे
हालात पे न मेरे,मुस्कराओ तुम अभी
ये तकाजा वक्त का,कुछ और नही है
रुठी हुई है आजकल तक़दीर हमारी
भगवान के घर देर है,अंधेर नही है
हारी हुई बाजी को पलटने का जिगर है
हिम्मत हमारी आज भी कमजोर नही है 
ये दौर मुश्किलों का है,कट जायेगा फिर भी
रहमत से उसकी कोई भी महरूम नही है
मंजिल का मुझे ख्वाब में परचम दिखाई दे
मेरे ख्वाब की ताबीर मुझसे दूर नही है

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
४ जुलाई २०१४, रातः११बजे
मोहब्बत की परिभाषा तुम्हे सिखला रहा हूं मैं
ग़मों का ये समंदर है,तुम्हे बतला रहा हूं मैं 
कई डूबे,कई उतरे,कई साहिल पे दम तोडे
ये उल्फत की हकीक़त है,तुम्हे दिखला रहा हूं मैं 
जुबां खामोश इसमें हो,अधर भी थरथराते हैं
निगाहें डबडबाती हैं, समंदर सूख जाते हैं 
ये ऐसा रोग है जिसका पता देरी से चलता है
न कुछ कहने को बचता है, न कुछ सुनने को पाते है 
कभी हम भी मोहब्बत का तराना गुनगुनाते थे
मोहब्बत है अजब अहसास दुनिया को बताते थे
मग़र अब हाल ऐसा है, न जीते है, न मरते हैं
कहीं जिक्र ए मोहब्बत हो तो दामन को बचाते है
बहुत मजबूर दिल से हो,मोहब्बत में उतर जाओ
लुटा दो अपने दिल का चैन,दीवाने से बन जाओ
न हासिल कुछ तुम्हें होगा,ये 'मुफलिस'की नसीहत है
कहानी अनकहे शब्दों की मत बेकार दोहराओ

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
५ जुलाई २०१४, प्रातः८ बजे
यूं बिकने को तो इस दुनिया में 
हर सामान बिकता है 
कहीं ज़ज्बात बिकते हैं
कहीं ईमान बिकता है 
धरम बिकता सरे बाजार
नारी भी यहां बिकती
लगाओ तुम भी कुछ बोली
बताओ क्या खरीदोगे
यहां हर शय बिकाऊ है 
अस्मत भी यहां बिकती
जो तुम चाहो तो इस बाजार से
ईमान ले जाओ
गिरा के थोडा सा खुद को
अगर बेईमान हो जाओ
मिलेगा हर तरह का माल
इस दुनिया के मेले में
चुका के दाम अंटी से
जो चाहो आज ले जाओ

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
५जुलाई २०१४, रातः१०बजे
तेरा खामोशपन भी अब हमारी जान ले लेगा
सुकूं छीनेगा ये मन का,जिग़र का चैन ले लेगा
तू क्यों नाराज़ है हमसे,ज़रा सा ये बयां करदे
मेरी आखों का हर मोती तुम्हारे घाव धो देगा

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
५जुलाई २०१४, रातः१०.१५बजे
मेरी तन्हाईयों को ग़र तुम्हारा साथ मिल जाये
मेरी ग़जलें सजे सुर में तेरी आवाज़ मिल जाये
करेंगे पार हर सीमा, दीवानेपन की हम दोनो
चलो मिलके मोहब्बत का.नया इतिहास लिख जायें
मैं जिंदा लाश हूं,मुझको धड़कती सांस तुम दे दो
मेरी रुह को मोहब्बत का नया अहसास तुम दे दो
मेरी किस्मत संवर जाये जो मेरे साथ चल दो तुम
मेरा पतझड़ सा जीवन है,इसे मधुमास तुम दे दो
हमारी इस मोहब्बत का बता, आगाज़ कब होगा
हसीं लम्हों के आने का सुखद अहसास कब होगा
तुम इतना दूर क्यों खामोश औ गुमसुम से बैठे हो
मिटेगी कब तलक़ दूरी,दिलों का साथ कब होगा
मोहब्बत की पनाहों में , नई तारीख़ लिख जायें
हम अपने प्यार की खुशबू से हर लम्हे को महकायें
वफ़ा की राह में इक मील का पत्थर मुकम्मल हो
मोहब्बत की मिसालों में हम अपना नाम लिखवायें

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस
१०जुलाई २०१४, प्रातः ९बजे