दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Friday, August 5, 2016

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काश यदि तुम न जाते तो
कुछ दिन साथ बिता जाते
अपने जीवन के अनुभव से
मुझको कुछ सिखला जाते
अंगुली पकड के पैयां चलना
तुमने ही सिखलाया था
मम्मा-पापा बुआ बोलना
तुमने ही सिखलाया था
कमी तुम्हारी बहुत खल रही
आखें रोज भिगा जाते
काश यदि.................
कठिनाई में जीवन जीना
तुमने ही सिखलाया था
व्यवहार कुशलता औ प्रेम का
तुमने पाठ पढाया था
तुम मेरा आदर्श रहे हो
कुछ दिन साथ निभा जाते
काश यदि.................
अपनी पीडा को न कहना
बस यही तुम्हारी आदत थी
तुम्हारी इस आदत से सबको
कितनी घोर शिकायत थी
बिन बोले चुपचाप गए तुम
कुछ तो हाल सुना जाते
काश यदि.................
अक्सर सूनी रातों में
आवाज तुम्हारी आती है
यादों की पुरवाई चलती
मुझको बहुत रुलाती है
बस एक बार मेरी खातिर
मेरे ख्वाबों में आ जाते
काश यदि.................
ऋषि राज शंकर"मुफलिस"
१६ जून २०१६ सायं ७;१०
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तुम्हें देखा तो मेरे दिल को इत्मिनान हुआ
कुछ रोज़ उम्र बढ़ गई,जीने की चाह में
माँ की कोख से कब्र तक का
फासला कुछ भी नहीं
चलते -चलते ज़माना गुज़र जायेगा

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बादल भी शरारती होते जा रहे हैं अब
गरजते हैं मेरे घर पे,बरसते हैं कहीं और
वफादारी के मायने ,
भी बदलते यूं जा रहे
कुछ दोस्त आस्तीनों में,
अब खंजर छिपा रहे

तेरी निगाह ने मुझको
यूं गिरफ्तार कर लिया
मैने कुछ इस तरह से
आज इफ्तार कर लिया
ऋषि राज शंकर"मुफलिस"
४ जुलाई २०१६ सायं ७;१०
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है ज़िद ये आंधियों की
वो हमारा घर उजाड़ेगी
मेरा गुरूर है कि वो
हमारा क्या बिगाड़ेंगी
लगा लें ज़ोर कितना भी
न तिनका उड़ने देंगे हम
मुझे रब़ का सहारा है
उन्हें चलने न देंगे  हम
कि जिनका नामलिखने
से पत्थर भी तैर जाते हैं
निगाह जिनकी तिरछी हो
तो समंदर सूख जाते हैं
नहीं डरता हूँ इस कारण
मैं आंधी और बवंडर से
मैं उसका नाम रटता हूँ
तो बवंडर काँप जाते हैं
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  03/08/2016 सायं 7 बजे
क्यों हर इक बात पे
तुनक के रूठ जाते हो
अदा कैसी है ये जो
हर दफा़ दिखाते हो
सजा ऐ मौत भी इक
बार दी ही जाती है
मगर हर मर्तबा आसूं
को क्यूं बहाते हो
तुम्हारे नाजो़ सितम
पलकों पे बिठाये हमने
तो क्यूँ हर इक बात पे
मुफलिस को यूं रुलाते हो
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वो शख्स अपनेआप
पे जो मुस्करा रहा था
न जाने कब से वोअपनों
से जख्म खा रहा था
ये बात सच है कि
अपने ही ज़ख्म देते हैं
उन्हीं ज़ख्मों में वो लज्जत
ज़रा सी पा रहा था
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  30/07/2016 रात्रि 10 बजे
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सुबह होती रही शाम ढलती रही
वक्त यूं ही सिसक के गुज़रता रहा
जाने कब गुज़रा बचपन, जवानी गई
मैं ठगा सा खड़ा और बिख़रता रहा
मुझे जो भी मिला, ज़ख्म देकर गया
आस्तीनों का हर साँप डसता रहा
चक्रव्यूह मेरे अपने ही रचते रहे
अभिमन्यु सा मैं जंग लड़ता रहा
ये दुनिया सुखों को मचलती रही
मुफ़लिसी में भी यूं ही मैं हँसता रहा

  ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  01/08/2016 रात्रि 9 बजे
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इम्तिहान जिंदगी में
कभी खत्म न हुऐ
हमने भी पास होने का
ज़ज्बा बनाये रखा
हर बार मेरे हाथ से
मंजिल छिटक गई
हमने जुनूने जंग में
हौसला बनाये रखा
ता उम्र कितनी आंधियां
छूकर निकल गई
हमने हथेली जोड़ कर
दीपक जलाये रखा
है मुस्तकिल यकीन कि
फ़तह मिलके रहेगी
'मुफ़लिस'हूँ मुफ़लिसी में
भी जलवा बनाये रखा
  ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  30/07/2016 रात्रि 10 बजे
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⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
मेरे ख्वाबों में ए हुजू़र
आतेजाते रहो
कुछ तो हक़ दोस्ती
का निभाते रहो
तुम्हें कुछ याद तो होंगी
वफा़ की कस्में भी
उन्ही कसमों का कर्जा
चुकाते रहो
गिला नहीं कि न मिल सके
हम तुम इस जनम
बस ख्वाबों में यूं ही तुम
मुस्कुराते रहो
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
ऐ सुकूं, मैं मुद्दतों से
तुम्हे ढूंढता रहा
मंदिर में,मस्जि़दों में
सर फोड़ता रहा
क्या ख़बर थी तुम मिलोगे
सांस थम जाने के बाद
अब जाके तुम मिले भी
तो दो गज़ कफ़न के बाद
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
वो कलाम थे मगर बडे़ कमाल थे
यकीनन शख्स वो इक बेमिसाल थे
उनके चेहरे पे इक अजब़ सा नूर था सच्चाई सादगी की इक मिसाल थे
वो बुलंदियों के बाद भी ज़मीं पे रहे
हमें गुरूर है वो इस धरा के लाल थे
  कलाम साहब को मेरा सलाम
खामोशी को खामोशी
से बात करने दो
अब जु़बां खामोश है
आखों से बात करने दो
इस खामोशी में हरगिज़
खलल न डालना कोई
ये दिल्लगी है मुझे
इंतजा़र करने दो
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मेरी आखों को किस कदर
यूं तुम मायूस करती हो
ये रस्ता रोज़ तकती हैं
तुम्हारे मुस्कुराने का
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मौला मेरे तू मुझपे
इतना तो करम करना
न दर से जाये भूखा
बस इतनी लाज रखना
तेरे दर का हूं सवाली
मेरे गुनाह बख्शो
मुझे सरपरस्ती देकर
रहमत की नज़र रखना
जबभी कभी मैं बिगडू़
मुझे सख्त सजा़ देना
गिरने से पहले मौला
मेरा हाथ थाम लेना
मैं रोज़ कुरेदता हूं अपने
दिल के घाव को
लज्जत बहुत मिली है
इसके दर्द में हमें
जितना बढ़ा है दर्द
उतने शेर लिख दिये
देखो तुम्हारे इश्क़ ने
कितने सितम किये 
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सारी ख़लिश को दिल
से अब मिटा ही डालिये
दो पल को ए हुज़ूर अब
मुस्करा भी डालिये
कितनी क़शिश है आप में
चेहरे पर नूर है
मुझको बता भी दीजिये
क्या मेरा क़सूर है
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