दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Friday, September 16, 2016

बेफिक्री में जीवन 
जीना सीख़ लिया 
दुनिया को ठेंगे पे
लेना सीख़ लिया
मक्कारों औ बेइमानों
की भेड़चाल में
सीधे रस्ते बच कर
चलना सीख़ लिया 
हर शख्स मतलब़ी है
तुमसे जो हाथ मिलाता
ऐसे दोहरे चेहरे 
पढ़ना सीख़ लिया 
आस्तीनों में साँप 
यहां पलते देखे हैं
इन साँपों के दांत 
तोड़ना सीख़ लिया 
सभी यहां दौलत के
पीछे पागल है
'मुफ़लिस'ने मुफ़लिसी 
में जीना सीख़ लिया 
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
15/09/2016 सांय4 बजे

लाचारियों मजबूरियों का बोझ
कुछ भी कर लो ये वज़न
कुछ कम नहीं होता,
ये बोझ लेकर साथ में,
ख़ुश रह सको तो ठीक
वर्ना ख़ुशियों का कोई
मौसम नहीं होता
हर हाल में जो ख़ुश रहे
बेहतर है वही शख्स
वो कौन सा दामन कभी
जो नम नहीं होता
जितना ख़ुदा ने लिख़
दिया है ज़िन्दगी का वक्त
एक लम्हा तयशुदा से
कभी कम नहीं होता
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
16/09/2016 प्रातः8बजे

Thursday, September 15, 2016

ताल से ताल मिलाने
का हुनर सीखना है
आँख से काजल को
चुराने का हुनर सीखना है
कब़ तलक़ ठोकरों पे
ठोकरें ख़ायेगे हम
दिल को बातों से बहलाने
का हुनर सीखना है
जब़ भी डूबी मेरी कश्ती
किनारे पर डूबी
कश्ती साहिल पे लगाने
का हुनर सीखना है
फर्श से अर्श पे जाने
की तमन्ना दिल में
इसे हकीकत में बदलने
का हुनर सीखना है
'मुफलिस' कब़ तक अकेला
लड़ेगा दुनिया से
चिंगारी आग बनाने
का हुनर सीखना है
ऋषि राज शंकर "मुफ़लिस"
15/09/2016अपरान्ह 12बजे

मुझपे अब़ अपने ज़ुल्म
की बस इंतिहा करो
यूं रुठने से बेहतर है
कि कह दिया करो
ख़ामोशिंया तेरी मुझे
भीतर तक तोड़तीं
है इल्तिज़ा कि दर्द
ऐसा मत दिया करो
है ज़िंदगानी चार दिन
इतना तो समझ लो
शिक़वों गिलों में वक्त
ज़ाया मत किया करो
ऋषि राज शंकर "मुफ़लिस"
12/09/2016अपरान्ह 3बजे
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तेरे हाथों में जब मेंहदी
हमारे नाम की रच जाये
तेरी सुंदरता बढ़ जाये
हमारा नाम हो जाये
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खामोश ज़ुबां,हो दिल में समर्पण 
और आँख में आंसू आ जाये
तब जा कर ये बने बन्दगी 
और इब़ादत कहलाये
ये तीनों जब मिलें एक संग
तेरा तार ख़ुदा से जुड़ जाये
तब तू उसका हो वो तेरा हो
और इब़ादत कहलाये
ऋषि राज शंकर "मुफ़लिस"
12/09/2016प्रातः5 बजे  
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कभी तो साथ में बैठो
कभी तो बात करो
इक मुद्दत सी हो चुकी
है मुलाकात करो
तेरे सवाल ही मेरी
ज़िंदग़ी का हासिल है
चलो मिल कर कुछ
और सवालात करो
चंद लम्हों को निकालो
सुकूने दिल के लिये
मेरी बाहों में पनाह लो
और दिल की बात करो
"मुफ़लिस"
9/09/2016 रात्रि 10 बजे 

Friday, September 9, 2016

गवारा है नहीं हरगिज़
तुम्हारी आँख में आँसू
बदन में आग लग जाती
दिल इनको देख़ लेता है
लगा दूं आग पानी में
जला दूं ये जहाँ सारा
तेरी कस़मों का जमघट
आके मुझको रोक लेता है
अजब़ सी आग सीने में
धधक जाती है पलभर में
तुम्हारी आँख का मोती
भी ठंडक छीन लेता है
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  08/09/2016 रात्रि 10 बजे
हवा़ का रुख़ बदलने में
नहीं कुछ वक्त लगता है
सोया नसीब है,जगने में
न कोई वक्त लगता है
हो जिनके हौसले मज़बूत
भुजाओं पर यकीं जिनका
उनकी बाज़ी पलटने में
नहीं कुछ वक्त लगता है
जुनूं हो कर्म करने का
तो हर मंज़िल तुम्हारी है
नतीजों को उलटने में
नहीं कुछ वक्त लगता है
मोहब्बत ऐसा द़रिया है
ग़़र इसमें डूब कर देख़ो
तो पत्थर दिल पिघलने में
नहीं कुछ वक्त लगता है
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  08/09/2016 सांय 8 बजे
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मौला मेरे, अब दिल को
मेरे  सख्त बना दे
अब आँसू किसी की
आंख में देखे नहीं जाते
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शीशे के घरों के मालिक हो
पत्थर से उलझन मत लेना
मिनटों में घरौंदा चटकेगा
इल्ज़ाम किसी को मत देना
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सुपुर्रदे ख़ाक के वक्त चंद
ग़ज़लें शेर पढ़ना चाहिये
मैं शायर हूँ तो मेरी मौत
भी शायराना होनी चाहिए
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बहला रहे हो ख़ुद को
क्यूं झूठे दिलासों से
आत्मा के आइने से
क्या छिपाओगे?
देखोगे आइना कभी
अपने ज़मीर का
ये मान लो कि ख़ुद से
ही नज़रें चुराओगे
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  07/09/2016 प्रातः 6 बजे
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इतना बुरा भी नहीं हूँ कि
जितना लोग समझते
पर क्या करें बिन सच
कहे,रहा भी नहीं जाता
मेरी मुसीबतों का सब़ब
मेरे भीतर की आग है
जो देखता हूँ कुछ ग़लत
तो सह नहीं पाता
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  07/09/2016 प्रातः 6 बजे 
कुछ बात अलग थी
उसके अंदाज़े इश्क में
तिरछी नज़र से देख़ना
फिर मुँह को छिपाना
दांत तले होंठों को
धीरे से भींचना
पल्लू को अगुंलियों में
कुछ गोल घुमाना
वो चुपके चुपके आड़
में परदे से देखना
नज़रों को मिला के
नजरों को चुराना
मुझको ख़बर नहीं थी
कि आदत है उसकी ये
बिन बात मुस्करा के
ज़ुल्फों को गिराना
मैं ख़ामख्वाह ही इश्क़
काअंदाज़ समझ बैठा
न भूख लग रही है
न नींद का आना
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  06/09/2016 प्रातः 6 बजे 
आइनों को दोष देने से
कुछ भी न मिलेगा
चेहरे पे धूल जम चुकी है
मान लीजिए
कब तक न मानियेगा
इन सच्चाईयों को आप
हकीक़त है इसे आप भी
पहचान लीजिये
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जर्जर देह पर लदा है
आत्मा का बोझ
किस तरह इस हाल में
जी रहा है आदमी
मुफ़लिसी के दौर में
है ख्वाहिशों का बोझ
फिर भी मुस्करा के कैसे
जी रहा है आदमी
हर सुबह उम्मीद जगती
रात में दम तोड़ती है
फिर नई उम्मीद लेकर
हँस रहा है आदमी
बेइंताही भीड़ में हर
शख्स भागता मिला
जागती आँखों में सपने
भर रहा है आदमी
सर्प विष का अब यहां पे
तोड़ तो मिल जायेगा
क्या करें जब आदमी को
डस रहा है आदमी
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  04/09/2016 सांय 6 बजे 
इक हमसफ़र को ढूँढता
दुनिया की भीड़ में
ना जाने किस जगह मुझको
मेरी पहचान मिल जाये
चलेगा साथ वो मेरे जब
इस दुनिया के मेले में
मेरा सरगम मुक्कमल हो
सुरों को साज़ मिल जाये
ज़माने भर की ख़ुशिंया मैं
न्योछावर तुमपे कर दूंगा
मेरे ज़ज्बात,गीतों को
तेरी आवाज़ मिल जाये
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  04/09/2016 प्रातः 6 बजे 
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आँखों में छिपे बैठे हैं,
सब ख्वाब तुम्हारे
जज़्बात तुम्हारे,अंदाज़ तुम्हारे
वादे बहुत से तेरे मेरे
बीच हुए थे
तुम भूल गए पर मुझे
वो याद हैं सारे
ज़ेहन में अब भी गूंजती
आवाज़ तुम्हारी
होंठों पे मचल जाते हैं
वो नग़मे तुम्हारे
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  04/09/2016 प्रातः 6 बजे 
अपने किरदार को
बेहद संभाल कर रखिये
ख़ुदा के ख़ौफ़ को
ज़ेहन में डाल कर रखिये
उसकी अदालत में
सबका हिसाब होता है
नकाब कितना भी गुनाहों
पे डाल कर रखिये
किसी ग़रीब की आहों से
बचाना ख़ुद को
वो ऐसी आग है दामन
संभाल कर रखिये
मिटा के ख़ुद को तुम
दुनिया से चले जाओगे
अपने खाते में बस नेकी
को डाल कर रखिये
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  01/09/2016 सांय 6 बजे 
इरादे नेक हो मज़बूत हों
फौलाद से पक्के
सफ़लता ख़ुद तुम्हारा द्बार
आकर ख़टखटायेगी
मुक्कमल होगा हर सपना
तेरी आँखों में जो बसता
फ़तह होगी तुम्हारी जब
निगाहे डबडबायेंगी
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ये बेज़ुबान आंसू भी
दिल का हाल कहते हैं
समंदर का ये वो कतरा हैं
जो आँखों में रहते हैं
कभी पलकों में घुट जाते
कभी चुपके से बहते हैं
हर इक लम्हा ये जाने किस
तरह आंखों में भर आते
कभी मातम में बहते हैं
कभी खुशियों में बहते हैं
कई ख़ामोश हो जाते हैं
इनके खौफ के आगे
कोई रोके अगर इनको
ये तब दरिया सा बहते हैं
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  31/08/2016 रात्रि 11बजे
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ज़िंदगी अपना सफ़र
तय कर रही थी
मैं तमाशा देख कर
मरता रहा जीता रहा
शिव हलाहल को
पिये एक बार ही
मैं रोज़ ही कितना
ज़हर पीता रहा
जख्म भले ही मुझको
अपनों ने दिये
उनके लिये फिर भी
दुआ पढ़ता रहा
दोस्त ही का़तिल बने थे
जब़ मेरी आवाज़ के
चुपचाप मैं तनहाईयों में
फिर गजल लिखता रहा
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इन आंसुओं को मत
रोको, बह जाने दो
ज़ुबां जो कह न सकी
अब इन्हें ,कह जाने दो
ये तो अच्छा हुआ
सैलाब निकल जायेगा
मेरे ख्वाबों की इमारत
को भी ढह जाने दो
ज़रा सा दिल ही तो
टूटा है कोई बात नहीं
बहुत मज़बूत हूँ ये
चोट भी सह जाने दो
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  31/08/2016 रात्रि 10बजे 
सरे बाजार रुसवा हो
रही थी मेरी मोहब्बत
तुम डबडबाई आखों
से सब देखते रहे
न आगे बढ़के हाथ थामा
न मुंह से कुछ कहा
तुमने वफ़ा के नाम पे
दो लफ्ज़ न कहे
🔜🔜🔜🔜🔜🔜
हम वो नहीं जो गिरगिट
की तरह रंग बदल लें
कपड़ों की तरह दोस्त
बदलना मेरी आदत नहीं
🔛🔛🔛🔛🔛🔛🔛
रंग जाओ मेरे रंग में
तो बात बन जाये
जीने का सलीका मिले
कुछ ढंग आ जाये
🔛🔛🔛🔛🔛🔛🔛
जीवन ऐसे चौराहे पर
आकर खड़ा हुआ
हर रस्ते पर घना अंधेरा
शून्य से भरा हुआ
चारों ओर शून्य दिखता
कोई आशा रही न बाकी़
लुटा पिटा सा निपट अकेला
खुद से ठगा हुआ
है यकींन फ़िर भी मुझको
तुम मुझे संभालोगे
आशाओं का दीप जला
कोई राह निकालोगे
कल रात मुझको ख्वाब
में तेरा ख्याल आया
इक लम्हा यूं लगा कि
तुझे आस-पास पाया
धीरे से तुमने मेरे कानों
में कुछ कहा था
थी मेरी बदनसीबी
मैं समझ ही न पाया
अच्छा हुआ जो तुमने
ख्वाबों में ही सही
मेरे क़रीब आ कर
मुझको गले लगाया
मैं दुआ कर रहा हूँ
हक़ीक़त हो ख्वाब ये
"मुफलिस ने इस वजह से
सजदे में सर झुकाया
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  21/08/2016 सांय 6 बजे
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बड़ी आरज़ू थी कि हम साथ चलते
कभी लड़खड़ाते,कभी कुछ संभलते  
कभी तो हमारी मोहब्बत समझतीं
कभी तुम महकती कभी हम बहकते
कई बार  मंज़िल पे जा करके लौटे
कई बार  बिखरे, कई बार टूटे
कई बार दिल को दिलासा दिया है
रहे अरमां दिल में मचलते- मचलते
कई बार खुद को ही धोख़ा दिया है
न जाने कई घूँट कड़वे पिया है
जो तुमसाथहोते,कुछ औ बात होती
कभीतुम समझतीं कभी हम समझते
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  21/08/2016 सांय 4 बजे 
जब़ भी मेरे ज़ेहन में
तेरा ख्याल आया
इक अक्सधुँधला-धुँधला
खुदके आस-पास पाया
अब कौन सा ग़म मिला है
जो मुस्करा रहे हो
पलकों के पीछे किस तरह
आंसू छिपा रहे हो
चेहरा तुम्हारा सब कुछ
बयान कर रहा है
यूं लग रहा है जैसे कि
ज़ख्म अभी हरा है
यूं हाले दिल को मुझसे
अब छिपा न पाओगे
लगता है साथ अपने
तुम मुझको रूलाओगे
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  13/08/2016 रात्रि 8 बजे 
नेता अपना देश लूटने में
हैं सारे व्यस्त
भूख़,गरीबी मंहगाई से
जनता सारी त्रस्त
जनता सारी त्रस्त ,
कोई हमको समझाये
फिर किस कारण से हम
सब15 अगस्त मनायें 
हाई वे पे लुटती इज्जत
नहीं सुरक्षित नारी
चीत्कार करे भारत माता
देख के अबला नारी
दुशाःसन कब फांसी लटके
हमको कोई समझाये
फिर किस कारण से हम
सब15 अगस्त मनायें 
दो सौ बरस गुलामी कर ली
फिर भी समझ न आये
जाति-पांति औ धर्म नाम
पर जनता को लड़वाये
जनता को लड़वाये
कोई इनको समझाये
फिर किस कारण से हम
सब15 अगस्त मनायें 
गांधी और सुभाष की धरती
करती हाहाकार
रिश्वतखोरी और कमीशन
बना एक व्यापार
देश की चिंता नहीं किसी को
भले भाड़ में जाये
भले भाड़ में जाये
कोई इनको समझाये
फिर किस कारण से हम
सब15 अगस्त मनायें 
अपराधों का ग्राफ दिनोदिन
ऊंचा उठता जाये
ध्रतराष्टृ बन गया कुंद प्रशासन
लाज शरम न आये
लाज शर्म न आये सो रहे
इनको कौन उठाये
फिर किस कारण से हम
सब15 अगस्त मनायें 
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  14/08/2016 रात्रि 8 बजे 
ज़ख्मों को फिर से अपने
तरोताजा़ कर लें हम
इक मर्तबा फ़िर से नई
पहचान कर लें हम
मंज़र तो रुख़सती का
तुम्हें याद तो होगा
आंसू के क़ाफिले को
फिर सलाम कर लें हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  10/08/2016 रात्रि 8 बजे