हमको भी मोहब्बत का सलीका़ नही आया,
दस्तूर मोहब्बत के निभाना नही आया,
रुठे तो कई दफा मेरी नादानियों पे तुम ,
पर क्या करुं मुझको ही मनाना नही आया
र सुबह फिर इक नई
'उम्मीद' सी आती तो है
शाम होते ही तड़प कर
रोज़ मर जाती तो है
चेहरा बहुत 'मासूम' सा
देखा किये हम देर तक
क्या ख़बर थी वो हमारा
कत्ल ही कर जायेगा
ये मोहब्बत का नशा भी
हर नशे से तेज है
लड़खडा़ये जिंदगी इसका
सुरुर होने के बाद
अल्फा़ज़ ढूंढता रहा
लिखने को गज़ल मैं
देखा तुम्हें तब जाके
मुकम्मल गज़ल हुई
'समय' ये कह रहा है की
'समय' का इंतजा़र कर
पर ये 'समय' को ही पता है
कब 'समय' वो आयेगा
दस्तूर मोहब्बत के निभाना नही आया,
रुठे तो कई दफा मेरी नादानियों पे तुम ,
पर क्या करुं मुझको ही मनाना नही आया
र सुबह फिर इक नई
'उम्मीद' सी आती तो है
शाम होते ही तड़प कर
रोज़ मर जाती तो है
चेहरा बहुत 'मासूम' सा
देखा किये हम देर तक
क्या ख़बर थी वो हमारा
कत्ल ही कर जायेगा
ये मोहब्बत का नशा भी
हर नशे से तेज है
लड़खडा़ये जिंदगी इसका
सुरुर होने के बाद
अल्फा़ज़ ढूंढता रहा
लिखने को गज़ल मैं
देखा तुम्हें तब जाके
मुकम्मल गज़ल हुई
'समय' ये कह रहा है की
'समय' का इंतजा़र कर
पर ये 'समय' को ही पता है
कब 'समय' वो आयेगा
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