सौगात
ग़मों की मिली कैसी सौगात है , दरकते हुए रिश्ते हैं जज़्बात हैं
खुदा जाने कितना वो रूठे हैं हमसे ,न दुआ बंदगी न कोई बात है !
खड़ा हूँ अकेले बहुत भीड़ में , न साया भी अपना मेरे साथ है
मुकद्दर में कितना अँधेरा है बाकी ,उजालों की होनी कब शुरुवात है
बहुत आरज़ू थी मुझे कोई पढ़ ले , दमेवापसी के अब हालात हैं
मै मुफलिस जिया था और मुफलिस मरूँगा,मुफलिसी में भी जीना अलग बात है
ऋषिराज शंकर "मुफलिस'
२१/०३/२०१२ १०:३० रात्री
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