दिल की अभिव्यक्ति

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Sunday, March 4, 2012

सौगात



सौगात


ग़मों की मिली कैसी सौगात है , दरकते हुए रिश्ते हैं जज़्बात हैं


खुदा जाने कितना वो रूठे हैं हमसे ,न दुआ बंदगी न कोई बात है !


खड़ा हूँ अकेले बहुत भीड़ में , न साया भी अपना मेरे साथ है


मुकद्दर में कितना अँधेरा है बाकी ,उजालों की होनी कब शुरुवात है


बहुत आरज़ू थी मुझे कोई पढ़ ले , दमेवापसी के अब हालात हैं


मै मुफलिस जिया था और मुफलिस मरूँगा,मुफलिसी में भी जीना अलग बात है


ऋषिराज शंकर "मुफलिस'


२१/०३/२०१२ १०:३० रात्री





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