दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Thursday, September 28, 2023

ज़िंदगी के रास्ते

 अब ज़िंदगी के रास्ते आते नहीं समझ

ये सोच कर घबरा रहा जाएंगे अब किधर

कमबख्त मौत भी हमसे, बेवफाई कर रही

जाता हूं जिस तरफ भी,आती नहीं उधर

मंझधार में फंसा हुआ बस डूबने को हूं

कश्ती भी दूर दूर तक आती नहीं नज़र

सब जा रहें हैं छूटते,रहबर जो साथ थे

तन्हाइयों ने दिल मेरा तोड़ा है इस कदर

अभिव्यक्ति की आवाज़ भी अनसुनी सी है

मालिक हमारा दे रहा,मीठा सा ये जहर


ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️


19/08/2022

खुद से ही अनजान हूं

 खुद में रह कर खुद से ही अनजान हूं

अब क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं

ईमानदार हूं तभी तक आज भी

जब मिले मौका तो मैं बेईमान हूं

     क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं

रफ्ता रफ्ता खर्च होती ज़िंदगी

हूं अकेला भीड़ में हैरान हूं

दो वक्त की रोटी की जद्दोजहद में

सुबह से भटका हुआ परेशान हूं

      क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं

कट गए हों पर,वो पंछी बन गया हूं

अब आसमां की दूरी से अनजान हूं

है नहीं कीमत यहां "अभिव्यक्ति"की

बहरों की दुनिया का मैं इंसान हूं


ऋषिराज अभिव्यक्ति

 ❤️


23/03/2022

कभी आओ तो सही

 हम भी होंठों पे अपने 

तुमको गुनगुना लेंगे

ग़ज़ल बनके मेरी दुनिया में

कभी आओ तो सही

हम भी जी लेंगे इन ख्वाबों

की हंसी दुनिया में

ख्वाब बन के ही मेरी आंखों में

 कभी आओ तो सही

जाम अश्क से भरे हंस के 

हम पी जाएंगे

दीवानी बनके मेरी महफ़िल में 

कभी आओ तो सही

रंजोगम भूलकर दुनिया नई

बसा लेंगे

अभिव्यक्ति बनके मेरे ज़ेहन में 

कभी आओ तो सही

ऋषिराज "अभिव्यक्ति" ❤️❣️


21/03/2022

रेत जैसे मुट्ठियों से फिसलता रहा

 रेत जैसे मुट्ठियों से फिसलता रहा

वक्त अपना सफर खत्म करता रहा

हम उम्मीदों के साए में बैठे रहे

सपनों का कारवां भी बिखरता रहा

शिकवा भी हम करें,तो किससे करें

मेरा मुंसिफ ही मेरा कत्ल करता रहा

कोई पढ़ेगा ज़रुर,बस इसी आस में

रातभर 'अभिव्यक्ति' यूं ही लिखता रहा


ऋषिराज "अभिव्यक्ति" ❤️❣️


13/03/2022

ये ज़िंदगी है क्या इक झमेला लगा

 *ये जीवन बस लोगों का मेला लगा*

*फिर भी हर इक शख्स अकेला लगा*

*अपनी अपनी ही फिकरों में उलझे सभी* 

*ये ज़िंदगी है क्या इक झमेला लगा*


*ना फुर्सत किसी को कि तुमको सुनें*

*अपने अपने सभी ताने बाने बुनें*

*रिश्ते नातों का कोई नहीं मोल है*

*खामखां अपना सिर हम,क्यूं इसमें धुनें*


*ख्वाहिशों में है लिपटी हरइक ज़िंदगी* 

*हारता आदमी ,भागती जिंदगी*

*लेने देने का व्यापार चलता यहां*

*बड़ी सौदागर सी हो गई ज़िंदगी* 


*जोड़ने और घटाने में सब व्यस्त हैं*

*अपनी दुनिया में देखो जिसे मस्त है*

*यहां दर्द है मगर कोई मलहम नहीं*

*आदमी अपने ही दर्द से पस्त है*

 *ऋषिराज "अभिव्यक्ति"*❤️

28/11/2022 10:00 am


जब भी मिलते हैं वो इक ज़ख़्म नया देते हैं

इतनी बेशर्मी से वो ,मेरा प्यार भुला देते हैं

नासमझ इतने भी नहीं हैं,कि दर्द ना समझे

बस वो मेरे दर्द का एहसास भुला देते हैं 

पनाहों में तेरी दुआ चाहता हूं

 *सीता का राम से जैसा था प्रेम*

*राधा का कृष्णा से जैसा था प्रेम*

*मीरा का कान्हा से जैसा था प्रेम*

*भूखा हूं भोजन में प्रेम चाहता हूं*

*वैसा ही प्रेम तुमसे,सनम चाहता हूं

*ना और कोई चाहत,ना उम्मीद बाकी*

*पिला दो जहर,जितना है जाम बाकी*

*छिपा लो कहीं अपने आगोश में तुम*

*बस इतना सा इक आसरा चाहता हूं*

*सभी मेरे अपनों ने मुंह ऐसा मोड़ा*

*भरोसा किया भी तो दिल ऐसा तोड़ा*

*जो चाहो तो फिर ज़िंदगी दे दो मुझको*

*मैं पनाहों में तेरी दुआ चाहता हूं*


 *ऋषिराज "अभिव्यक्ति"*❤️

23/11/2022 1:00 pm

बहुत याद आता है बचपन हमारा

 *ना जाने कब हम बड़े हो गए*

*बचपन से अपने जुदा हो गए*

*मासूम यादों का लेकर सहारा*

*बहुत याद आता है बचपन हमारा*

*छुट्टी में घर पर उपद्रव मचाना*

*भाई संग मिलके बहन को सताना*

*वो छुपम छुपाई का खेल हमारा*

*बहुत याद आता है बचपन हमारा*

*ना होमवर्क करना,ना टीचर से डरना*

*वो अल्हड़पन,वो क्लास बंक करना

*खो गया मस्ती का वो दौर हमारा*

*बहुत याद आता है बचपन हमारा*

*ना चिंता थी कोई,ना खोने का ग़म*

*बस हर दम शरारत में डूबे थे हम*

*थप्पड़ था पापा का,और गाल हमारा*

*बहुत याद आता है बचपन हमारा*

*रफ्ता रफ्ता समय भी गुज़रता गया*

*बचपन भी हमसे फिसलता गया*

*उम्र के फासले भी बड़े हो गए* 

 *बचपन से अपने जुदा हो गए*

*मासूम यादों का लेकर सहारा*

*बहुत याद आता है बचपन हमारा*


  *ऋषिराज "अभिव्यक्ति"*❤️

 उम्र बढ़ती रही साथ चलता रहा

धूप-छांव में सफर यूं ही कटता रहा

30 बरसों की दूरी हमने संग जिया

तुम हो मेरी प्रिय, मैं हूं तेरा पिया 


क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए

शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही


चाहे मधुबन में पतझार लाना पड़े

या मरुस्थल में शबनम उगाना पड़े

मैं भगीरथ सा आगे चलूंगा मगर

तुम पतित पावनी सी बहो तो सही

क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए


पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो

मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो

मैं भी दशरथ सा वरदान दूंगा तुम्हें

युद्ध में कैकई सी रहो तो सही

क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए


हाथ देना ना संन्यास के हाथ में

कुछ समय तो रहो,उम्र के साथ में

एक भी लांछन सिद्ध होगा नहीं

अग्नि में जानकी सी दहो तो सही


क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए

अंसार कंबरी 

निष्प्राण देह और घर का आंगन

 देह मेरी निष्प्राण पड़ी थी

मेरे घर के आंगन में

एक अजब सी खामोशी थी

मेरे घर के आंगन में

कुछ परिजन खामोश खड़े थे

कुछ व्हाट्सअप में डूब गए थे

कुछ अपने थे बिलख रहे जो

मेरे घर के आंगन में

तिनका तिनका जो जोड़ा था

अपने खून पसीने से

सबकुछ अपना समझ लिया था

मैंने अपने जीवन में 

वो सब कुछ अब छूट गया था

मेरे घर के आंगन में

गिले शिकवे भी तब तक होते

जब तक देह में सांस है

ना कोई उम्मीदें अब हैं

ना कोई भी आस है

पंछी पिंजरे से निकल चुका अब

मेरे घर के आंगन में

जल्दी में ही सब लगते हैं

शव घर से ले जाने को

रामनाम सत्य कहके चल दिए

अंतिम क्रिया कराने को

जल्दी जल्दी हुई मुखाग्नि

सब अपने घर को भागे

केवल परिजन लौट रहे थे 

मेरे घर के आंगन में

कोई वसीयत खोज रहा था

कोई पासबुक ढूंढ रहे

किसको मैंने क्या बांटा है

सब अपना हित खोज रहे

असली चेहरे सबके दिख रहे

जिनको अपना समझा था

देख रही थी मेरी आत्मा

मेरे घर के आंगन में 

ये सब मैंने क्यूं लिखा है

समझ सको तो, समझ सको

केवल प्रभु अंतिम साथी है

बस उससे ही प्रेम करो

कुछ भी नहीं हमारा अपना

मेरे घर के आंगन में


ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️

25/10/2022

अर्जुन खड़ा अकेला है

 फिर महासमर की बेला है

और अर्जुन खड़ा अकेला है

उठो,जागो प्रतिकार करो

दुश्मन पर वज्र प्रहार करो

       अब मां पर संकट आया है

       फिर दूध की लाज निभाना है 

       अब अरि की छाती रौंदो तुम

       अर्जुन का साथ निभाना तुम

       तुम महाराणा का मान धरो

       उठो,जागो प्रतिकार करो

हर रावण का वध करना है

हर सीता तुम्हें बचानी है

ना इसमें तनिक हिचकना है

हर लंका तुम्हें जलानी है

हर लक्ष्मणरेखा पार करो

उठो,जागो प्रतिकार करो

         जब धर्म पे संकट आया है

         तुम मूर्ख हिंदुओं सोते हो

         फिर बाबर तुमको रौंद रहा

         तुम कायर बन के रोते हो

         पौरुष पर कुछ अभिमान करो

         उठो,जागो प्रतिकार करो

फन कुचलो उन जयचंदो का

जो अरि से हाथ मिलाते हैं

वो आंख फोड़ के रख दो तुम 

जो मां पर आंख उठाते हैं

जननी का कुछ सम्मान करो

उठो,जागो प्रतिकार करो

  जो बहन के आंचल पर उठे

        वो हाथ तोड़कर रख दो तुम

        जो देश बेच कर खाते हैं

         वो पेट फाड़कर रख दो तुम

         शास्त्र बहुत से पढ़ डाले

         अब शस्त्रों का संधान करो

          उठो,जागो प्रतिकार करो

तुम उसी भरत के वंशज हो

जो सिहों से खेला था, 

जब चक्रव्यूह था रचा गया

अभिमन्यु खड़ा अकेला था

अब शपथ तुम्हें तेरी जननी की

तुम मत घबराओ वार करो

उठो,जागो प्रतिकार करो

            अब भविष्य सनातन का आगे

            तुम पर ही सब निर्भर होगा

            इस धर्मयुद्ध को साथ लड़ो

            निश्चित ही कल सुंदर होगा

            फिर वेद ऋचाएं गूंज उठे

            तुम राम बनो संहार करो

            उठो,जागो प्रतिकार करो


ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️

02/09/2022

           

लहर लहर लहराए तिरंगा

 *लहर लहर लहराए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*

*कभी ना झुकने पाए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*


1

*आज़ादी के मतवालों को*

*यही तिरंगा प्यारा था*

*फांसी के फंदे को चूमा*

*देश पे तन मन वारा था*

*इसकी शान ना झुकने पाएsss*

*इसकी शान ना झुकने पाए जान भले ही जाए*

*लहर लहर लहराए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*

2.

*तीन रंग की छटा अनोखी*

*शांति का परिचायक है*

*सकल विश्व में डंका बजता*

*ये भारत का नायक है*

*दुश्मन इससे थर थर कांपे sss*

*दुश्मन इससे थर थर कांपे उसके होश उड़ाए*

*लहर लहर लहराए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*

3.

*ये तीन रंग भारतवासी के*

*जीवन का आधार बना*

*संविधान अपने भारत का*

*लोकतंत्र का सार बना*

*जान लुटा देंगे इस पर हमsss*

*जान लुटा देंगे इस पर हम*

*इसका मान बढ़ाएं*

*लहर लहर लहराए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*

4

*तीन रंग की साड़ी*

*मेरी भारत मां को प्यारी है*

*स्वावलंबी भारत हो अपना*

*अब ये नियत हमारी है*

*स्वदेशी है लक्ष्य हमारा sss*

*स्वदेशी है लक्ष्य हमारा*

*दुनिया हैरत खाए*

*लहर लहर लहराए तिरंगा*

*लहर लहर लहराए*


*ऋषिराज "अभिव्यक्ति"*❤️

अभी ये तड़पन नई नई है

 पथराई आंखें,ना‌ कोई हसरत

अभी ये तड़पन नई नई है

अजब सी उलझन,है खुद से चिढ़ भी

अभी ये ब्रेक अप नई नई है

1

अभी रुलाएंगी यादें तुमको

कहीं ना तुमको सुकूं मिलेगा

जिगऱ में उठेंगी टीसें अक्सर

ये बेवफ़ाई नई नई है

2

वफ़ा के नगमें हैं झूठ सारे

इसी का तुमको यकीन होगा

हमेशा छलकेंगी तेरी आंखें

ये दिल में सिसकन नई नई है

3

वफ़ा का ऐसा सिला मिलेगा

ये ख्वाब में भी नहीं था सोचा

जी कर रहा जी भरके रोएं

ये फांस दिल में नई नई है

4

ज़रा मोहब्बत मिली थी तुमको

लगे थे तुम भी हवा में उड़ने

अभी हकीकत से वास्ता है

अभी ये ठोकर नई नई है

ऋषिराज "अभिव्यक्ति"* ❤️

3/02/2023

9am

जीवन के रंग

 हमने जीवन को कुछ ऐसे रंग बदलते देखा है*

*सुबह चहकते,शाम बिलखते रात तड़पते देखा है*

*मायूसी और अंधियारे में सूरज उगते देखा है*

*चटक धूप में भी सावन की बूंद बरसते देखा है*

*कब क्या है,क्या हो जाए इसकी कोई थाह नहीं*

*बड़े बड़े धन्नासेठों को तिल-तिल मरते देखा है*

*भूख,गरीबी,मंहगाई हों , तीनों जिसकी महबूबा*

*ऐसे जीवन को भी मैंने ,हरदम हंसते देखा है*

*नदियां ऊपर से हंसती हैं कल-कल कल-कल करती हैं*

*गहराई में कब रोती हैं, बोलो किसने देखा है* 

*जैसी करनी वैसी भरनी इस जीवन का सार यही*

*अहंकार का अंत बुरा है ,दस सिर कटते देखा है*

*हमने जीवन को कुछ.....

*बांध के मुठ्ठी जन्म लिया है,दुनिया में कुछ करने को*

*अंत समय में जाते सबको हाथ पसारे देखा है*

*सुबह चहकते शाम बिलखते...*

*"अभिव्यक्ति" जो ना हो पाई उसको भी तुम पढ़ लेना*

*अक्सर सूखी आंखों को भी हमने रोते देखा है*


*ऋषिराज "अभिव्यक्ति"*❤️

02/06/2023

सारे हुए लब

 लब ज़िंदगी ने क्या सिए, खामोश हो गए

हम ज़ुबान रख के भी ,बेज़ुबान हो गए

ऐसा नहीं है सारा मुकद्दर का दोष था

कुछ मेरे गुनाह भी मुझपे मेहरबान हो गए


जो गुनाह मैंने कभी किए ही नहीं थे

उन गुनाहों की सज़ा जब भोगता हूं

ये समय की मार है मैं इसलिए खामोश

मैं स्वयं ही खुद से खुद को को

सता हूं

सावित्री

 जिस शक्ति के आगे यम भी

हुए बहुत मजबूर

सत्यवान को देकर जीवन

करी मुसीबत दूर

सावित्री की जिद से

यम भी हार गए

स्त्री से हारे, स्तर

पहचान गए 

शक्ति के आगे तो 

देव घबराते हैं 

हम मानव फिर किस

श्रेणी में आते हैं 

इसीलिए कहता हूं कि

ये काम करो

हाथ जोड़कर शक्ति

को प्रणाम करो

एक प्रश्न अनुभव का

 एक प्रश्न अनुभव का 

अब तक समझ ना आया

चिरनिद्रा का अनुभव 

कोई बता ना पाया

जाने कैसा लगता होगा

मृत्यु निकट खड़ी हो जब

किस क्षण सांसें रुक जाएंगी

कोई समझ ना पाया अब

जीवन भर के पाप 

याद आते ही होंगें

मन ही मन जाने वाले

पछताते होंगे

मृत्यु दबे पांव 

जब आती होगी

ज़िंदगी खामोश 

पड़ी पछताती होगी

कर्मों का फल सोच 

मनुष्य घबराता होगा

नर्क कल्पना से ही

जीव पछताता होगा

रिश्तों का दर्द अंत समय में

टीस मारता होगा

झूठी दुनिया से ये मन

फिर दूर भागता होगा

इसीलिए कहता हूं

सबसे प्यार करो

जीवन अदभुत है

इसका श्रंगार करो

अंत समय फिर नहीं

तुम्हें पछताना होगा

ये तो सच है सबको

इक दिन जाना हो

गा


ऋषि राज शंकर "#अभिव्यक्ति"

भगवा श्रीराम का बाना

 भगवा श्रीराम का बाना

सनातन ने प्रण ठाना

हिंदुओं तुम्हें जगाने आई हूं

हो हिंदू राष्ट्र हमारा

यही संकल्प हमारा

हिंदुओं तुम्हें जगाने आई हूं

1

प्रभु राम के ही नाम से हर

काम तुम करो

यूं जातियों में हिंदुओं तुम 

उलझा ना करो

हर मुश्किलें आसान हों

जब राम साथ हैं

और राम जी के साथ में

हनुमान साथ हैं

भगवा पहचान हमारी

यही तकदीर हमारी

हिंदुओं तुम्हें बताने आई हूं 

हो हिंदू राष्ट्र हमारा

यही संकल्प हमारा

हिंदुओं तुम्हें जगाने आई हूं

2

हो देश हिंदू राष्ट्र

अब ये काम सिद्ध हो

आराम है हराम अब 

संकल्प सिद्ध हो

अब वेद मंत्र गूंज उठे

हर दिशाओं में

श्रीराम के ही नाम से

हर काम सिद्ध हो

भगवा घर घर में छाए

ध्वजा भगवा लहराए

हिंदुओं तुम्हें बताने आई हूं 

हो हिंदू राष्ट्र हमारा

यही संकल्प हमारा

हिंदुओं तुम्हें जगाने आई हूं

3

महाराणा और शिवाजी का

इतिहास रहा है

माथे पे तिलक हिंदुओं 

की शान रहा है

भगवा की लाज रखने को

बलिदान हुए हैं

केसरिया बाना हिंदुओं की

आन रहा है

आंच भगवा पे ना आए

जान चाहे चली जाए

हिंदुओं तुम्हें बताने आई हूं 

हो हिंदू राष्ट्र हमारा

यही संकल्प हमारा

हिंदुओं तुम्हें जगाने आई हूं


ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️

14/02/2023

सौगंध हमें इस मिट्टी की

 सौगंध हमें इस मिट्टी की,

हम भारत स्वर्ग बनाएंगे

वक्त पड़ा तो जान भी देंगे

अपना लहू बहाएंगे

जय भारत जय वंदेमातरम्

गान यही बस गाएंगे 

वक्त पड़ा तो जान भी देंगे

अपना लहू बहाएंगे


1

आज़ादी के मतवालों ने

अपना लहू बहाया था

उनके प्राणों की कीमत पर

आज़ादी को पाया था

लाज शहीदों की रखेंगे

अपना फ़र्ज़ निभाएंगे

जय भारत जय वंदेमातरम्

गान यही बस गाएंगे


2

रहे सुरक्षित मेरा भारत 

ये प्राणों से प्यारा है

दुश्मन की छाती को रौंदे

ये संकल्प हमारा है

महाराणा और वीर शिवाजी

की हम रीत निभाएंगे 

जय भारत जय वंदेमातरम्

गान यही बस गाएंगे 

  

3    

दुश्मन गर जो आंख उठाए

उन आंखों को फोड़ेंगे

भारत मां की कसम हमें है

हरगिज़ हम ना छोड़ेंगे

दुश्मन के फिर लहू से 

अपनी मां का पैर सजाएंगे 

जय भारत जय वंदेमातरम्

गान यही बस गाएंगे 



ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️

17/01/2023

बेटी का बचपन

 बेटी जब भी तेरा बचपन

मुझको याद कभी आता है 

तेरा घुटनों ठुमक के चलना

तन मन महका जाता है 

मेरी गोदी में आकर जब

किलकारी तू भरती थी.

मेले पापा प्याले पापा

तुतलाकर तू कहती थी

तेरी यादें अक्सर मेरी.

आंख भिगो जाता है 

बेटी तेरा..................

बात बात पे तू रुठे और

मुझे मनाना पड़ता था

कभी कहानी,लोरी गा के

तुझे सुलाना पड़ता था

हर लम्हा तेरे भोलेपन की

याद दिला जाता है 

बेटी तेरा..................

जिस दिन तूने जन्म लिया था

घर आंगन मेरा महका था

तेरी चुलबुली शैतानी से

बिना नशे के बहका था

छुपा छुपी का खेल हमारा

याद बहुत आता है 

तुझको विदा करुंगा कैसे

दूजे के घर जाने को

प्रियतम के घर जाकर

प्यारा इक संसार बसाने को

ये ख्याल ही मुझसे मेरे.

प्राण लिये जाता है 

बेटी तेरा..................


ऋषि राज शंकर 'अभिव्यक्ति '

  २९ सितंबर २०१४, रातः१० बजे