दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Thursday, August 30, 2018

खाक़ होके राख़ में
मिल जायेंगे कभी
हम भी अजीब शख्स
हैं,याद आयेंगे कभी
तुम दो घड़ी के वास्ते
ग़र साथ में चलो
हम भी तुम्हारे काम तो
आ जायेंगे कभी
ग़र मुस्कुरा के देखलो
वादा रहा सनम
तेरी गली में सजदा
करने आयेंगे कभी
तुमने सुकून से हमें
मरने भी न दिया
हमको भी ये कसम
है कि रुलायेंगे कभी

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं:10:00 बजे 30/08/2018
दर्द में डूबे लफ्ज़ मिलें तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ग़म में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
तन्हा रातों को अक्सर मैं
खु़द को ढूंढा करता हूँ
प्रेम में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
अबकी सावन में आँखे भी
दरिया बनकर उमड़ पड़ी
कुछ देरऔर बरस लें ये तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
हर इक शख्स ज़माने में
अपनी फिक्रों में उलझा है
मेरी उलझन सुलझे तब ये
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
पैगाम मोहब्बत का देता हूँ
अमन चैन के साथ रहो
हिंदुस्तान सुरक्षित हो तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं:9:30 बजे 30/08/2018
तेरे दर से जो रोशन हुआ
मैं तो वो चिराग़ हूँ
न हवा में हौसला है
कि बुझा दे मेरी लौ को
जो फ़लक में है चमकता
मैं वो आफ़ताब हूँ
जो मैं हूँ ,वो तेरी हर दम
रहमत का नूर हूँ
जहाँ गुल महक़ रहे हों
ऐसा वो बाग़ हूँ
चाहता हूँ कबसे रहना
तेरी बारगाह में आके
यही तिश्नगी बुझा दे
जन्मों की प्यास हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:11:30 बजे 22/08/2018
दमे वापसी अभी है
बडा़ याद आ रही हो
पर्दे के पीछे छुप,क्यूं
नज़रें चुरा रही हो
मैं ये मानता हूँ मुझसे
कुछ गलतियाँ हुई थी
अब आखिरी समय में
क्यूं इन्हें गिना रही हो
वादा किया था संग संग
जियेंगे और मरेंगे
फिर क्या वजह है अब
क्यूं,दामन छुडा़ रही हो
ये बात और है कि, ना
मिले हम इस जहाँ में
मेरी धड़कनों में बसके
मेरे साथ जा रही हो
'मुफ़लिस' हुआ जो मुमकिन
मिल लेंगे उस जहाँ में
उम्मीद बन के मेरी
मुझको रुला रही हो
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:9:30 बजे 26/08/2018
मेरी बिटिया
मेरी बिटिया बड़ी हो गई
घुटनों चलके खड़ी हो गई
मैनें नाजो़ं से पाला है उसको बहुत
थपकियां देके उसको सुलाया बहुत
कुछ पता ना चला,वक्त चलता रहा
वो सयानी बड़ी हो गई
  घुटनों चलके..... ,
कल चली जायेगी, वो मुझे छोड़कर
अपने साजन के घर,मेरा दिल तोड़ कर
चाहा था रोकना,रुक ना पाये मगर
आसुओँ की झडी़ हो गई
    घुटनों चलके..... ,
वो मेरी आन थी, वो मेरी जान है
है वो मेरा गुरुर, मेरा सम्मान है
ये हकीकत है कैसे बयां मैं करुं
दास्ताँ ये बड़ी हो गई
     घुटनों चलके.....
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं:5:30 बजे 29/08/2018

Wednesday, August 22, 2018

मोदी तुमने चार बरस में 
नेक काम कर डाला है
गर्म तेल से भरा कटोरा 
सर्प बिलों में डाला है
सब विषधर बिलबिला उठे हैं
एक हो रहें हैं सारे 
मोदी ना आये दोबारा 
देतें हैं मिल कर नारे
तेरा ये डर, इनके ऐसे
दिल दिमाग पे बैठा है
देख भतीजा जाकर अपनी
बुआ गोद में बैठा है
नोटबंदी कर डाली तुमने
इनका सब कुछ लूट लिया
ऐसा चांटा दिया गाल पे
तन मन सब झकझोर दिया
देश द्रोहियों की तुमने
जड़ खोद दिये मठ्ठा डाला
रोक दिये आतंकी हमले
पाकिस्तान हिला डाला
राहुल गांधी तेरे सत्ता 
में आने से डरता है 
अक्सर सपने में डर कर
वो मम्मी ,मोदी रटता है 
कर्नाटकऔर कैराना में 
लोभी लंपट एक हुऐ
कांग्रेस निर्वस्त्र हो गई
सबके सब निर्लज्ज हुऐ
नहीं देश की चिंता इनको
बस सत्ता का ध्येय लिये
तेरी जीत ना होने देंगे
एक मात्र ये लक्ष्य लिये
एक,सेवा और उपकार करो
इतिहास नया,फिर रच डालो
राम लला,का टेंट हटा कर
मंदिर भव्य बना डालो
फिर उन्नीस क्या फिर चौबीस 
तक ,राज तुम्ही कर पाओगे
इन सांपो के दाँत तोड़
भारत का मान बढा़ओगे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 5/06/2018


यूं ही हालात करवट बदलते रहे
हम न बदले मगर वो बदलते रहे
ना था मेरा कुसूर,और न कोई ख़ता
भीगते हम रहे ,वो बरसते रहे
तूफां,कई मर्तबा तो मेरे घर पे आये
हम भी बसते रहे फिर उजड़ते रहे
तुमको रुसवा करुं ऐसी मर्जी नही
इस वजह से लबों को हम सिलते रहे
ये और बात है कि अब भी खामोश हूं,
लेकिन सीने में शोले दहकते रहे
महफिलों में जाम जब कहीं भी चले
कुछ महकते रहे ,कुछ बहकते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 28/05/2018

शिकस्त दरशिकस्त हम खाते रहे
फिर भी हर हाल में मुस्कुराते रहे
मेरी आवाज़ से उनको नफ़रत सी थी
उनपे गज़ले मग़र गुनगुनाते रहे
वो ना आये मगर मन्नतें कितनी की
फिर भी शिद्दत से उनको बुलाते रहे
हम तरसते रहे उनके दीदार को
वो दुपट्टे में मुखडा़ छिपाते रहे
ये मालूम है छुप छुप वो देखा किये
फिर भी मिलने से क्यूं कतराते रहे
जिंदगी इक तवायफ़ का कोठा हुई
नाचते हम रहे, वो नचाते रहे
वक्ते रूख़सत,अलविदा के समय
वो निगाहों में आँसू छिपाते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 26/05/2018

 *#जीवन एक युद्ध क्षेत्र*#
ये सच है,जीवन युद्ध क्षेत्र
हर पल इसमें लड़ना होगा
आनंद कभी,कभी पीडा़ हो
सहना होगा,जीना होगा
दीपक की तरह है, हर जीवन 
कभी बुझती लौ कभी बढ़ती लौ 
अनगिनत बवंडर छा जायें
तूफानों मे जलना होगा
यह कर्म क्षेत्र,यह धर्म क्षेत्र
भागो तो भाग न पाओगे
इसमें लड़कर संघर्ष करो
अर्जुन की तरह रहना होगा
ये ऐसा एक समंदर है
इसकी लहरें ऊंची नीची
हर ज्वार भाट सहते सहते
पतवार तुम्हें खेना होगा
काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह
ये पांच द्वार का च्रकव्यूह
तोडो़ इन सारे द्वारों को
फिर मोक्ष मार्ग चलना होगा
हम शून्य साथ में लाये थे
और शून्य साथ ले जायेंगे
जीवन का अन्त है एक शून्य 
इसमें विलीन होना होगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 24/05/2018
गुरुर कत्ल कर रहा 
रिश्तों का सरे आम
ग़र हो सके जो 
आपसे रिश्ते बचाईये
बर्बादियों का एक ही
कारण बना गुरुर
जे़हन में इसके कीडो़
चुन चुन के मारिये 

बरसों की दोस्ती का 
कुछ ऐसा सिला दिया
मेरा ही कत्ल ,मेरे ही 
मुंसिफ़ ने कर दिया

   
अगर प्राईवेट नौकरी करना 
तो मैं ये समझाता हूँ
कैसे इसमें सफ़ल बनो
ये गुरुमंत्र बतलाता हूँ
"यस सर" तेरा गुरुमंत्र है
बस इसको जपते जाओ
सूरज चाहे उगे जिधर भी
"यस सर" बस कहते जाओ
खुद्दारी की ऐसी तैसी
अपनी सोच मिटा डालो
"यस सर" कहते कहते अपना
जीवन सफल बना डालो
बाॅस की मर्जी में ही तेरी
हर खुशियों की चाभी है
और इसका उल्टा करने
छिपी हुई बरबादी है
कुत्ते जैसा जीवन जीकर
जीवन सफल बना डालो
बिना पूंछ के "यस सर" कहके
अपना काम चला डालो
स्वाभिमान ,खुद्दारी भूलो
क्या इसको ले चाटोगे?
ये शब्द बड़ा उत्पीड़न देंगे
कब तक खुद से भागोगे
राशन,वेतन,और नौकरी तीन
तीन माह की पास में रखना
प्राईवेट नौकरी तब करने की
अपने जिग़र में दम रखना
अग़र समय पे न पहुँचो तो
वेतन झट, कट जाता है
चमचागीरी कर लेने से
इंक्रीमेंट लग जाता है
समझौता खुद के वजूद से
करने को तैयार करो
जीवन मे खुशियां पानी तो
बस मालिक से प्यार करो
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:6:30 बजे 11/05/2018

कल रात में,ख्वाबों में 
वो फिर से आ गये
माने नहीं,जख्मी जिग़र
फिर से दुखा गये
रिसते हुऐ जख्मों को
फिर हौले से कुरेदा
कुछ दर्द जब मुझको
हुआ तो मुस्कुरा गये
   ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 30/04/2018
माला में मोती दिख रहे
धागा नहीं दिखता
धागे के बिना कोई भी
माला नहीं बनता
देख कर मोती को
सब इतरा रहे हैं
त्याग धागे का सभी
बिसरा रहे हैं
लेकिन धागा जब 
कभी टूटा अगर
गुरुर मोतियों का
बिखर जायेगा
सत्य के दर्शन
तभी हो जायेंगे
वजूद धागे का
नज़र आ जायेगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 28/04/2018

नींद आँखों में अब नहीं आती
ख्वाब पलकों पे सज नहीं पाते!
जाने किस मोड़ पे लाई जिंदगी हमको
अंधेरा छाया है,रस्ते नज़र नहीं आते!
दर्द इतना है की कह नहीं सकता
समंदर अश्कों का,पी नहीं सकता
ज़ख्म इतने कुरेदे हैं इन वफ़ादारों ने
ग़र भरना भी चाहूं तो भर नही सकता!!
मेरे आंसू तेरा दामन जला के छोड़ेंगे
तुमको रस्ते का इक पत्थर बनाके छोड़ेंगे
भूलना चाहो भी,मुझको ना भूल पाओगे
दुआ भी और इससे ज्यादा दे नहीं सकता
     ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:9:30 बजे 28/04/2018

सरक़ती रही जिंदगी रफ्ता रफ्ता
मचलती रही हसरतें रफ्ता रफ्ता
ना जाने किधर ले चली जिंदगी अब
हम भी खा़मोश चलते रहे रफ्ता रफ्ता
मंजिलों का पता अब तलक लापता है
क्यूं भटकता रहा अब तलक रफ्ता रफ्ता
उसको पाने की जद्दोजहद मन में अबतक
हुआ बावरा मन मेरा रफ्ता रफ्ता
ना ख्वाहिश है कोई,ना कोई गिला है
मुझे मेरे मालिक से सबकुछ मिला है
बस इक बार उसका भी दीदार हो जाये
तमन्ना यही पल रही रफ्ता रफ्ता

हमको भी मोहब्बत का सलीका़ नही आया,
दस्तूर मोहब्बत के निभाना नही आया,
रुठे तो कई दफा मेरी नादानियों पे तुम ,
पर क्या करुं मुझको ही मनाना नही आया



र सुबह फिर इक नई
'उम्मीद' सी आती तो है
शाम होते ही तड़प कर
रोज़ मर जाती तो है

चेहरा बहुत 'मासूम' सा
देखा किये हम देर तक
क्या ख़बर थी वो हमारा
कत्ल ही कर जायेगा

ये मोहब्बत का नशा भी
हर नशे से तेज है
लड़खडा़ये जिंदगी इसका
सुरुर होने के बाद

अल्फा़ज़ ढूंढता रहा
लिखने को गज़ल मैं
देखा तुम्हें तब जाके
मुकम्मल गज़ल हुई

'समय' ये कह रहा है की
'समय' का इंतजा़र कर
पर ये 'समय' को ही पता है
कब 'समय' वो आयेगा
मेरी हस्ती को समझो 
ये तेरे बस की बात नही
शेर की ताकत गीदड़ समझे
ये गीदड़ की औकात नही

बहुत देर तक तन्हाई में 
तुझपे गज़ल लिखता रहा 
और आँसुओं का काफि़ला 
इस दरमियां बहता रहा
हाँ,यकीनन अब भी तेरी 
याद तड़पाती बहुत
सामने सबके हँसा पर 
दिल में बस रोता रहा 
लामबंद हो रहे लुटेरे
इक 'चौकीदार' भगाने को
देश को रबडी़ जैसा खाने
की आस जगाने को
माँ के पप्पू को सपने में
रोज़ दिखाई कुर्सी दे
भारत की सेवा को तत्पर 
ये भारत को ,खाने को
बबुआ-बुआ गले मिल बैठे
शिक़वे गिले मिटाने को
साम दाम औ दंड भेद से
सत्ता पाना परम लक्ष्य है
ये लंपट आतुर हो गए हैं
एक मंच पर आने को
छप्पन इंची सीने से डर
ये सबके सब बौराये हैं
नोटबंदी ने लूटा इनको
बरसों की जमा गंवाये है
देशवासियों अब तो जागो
इनको इनकी जगह दिखाओ
ये भारत के लायक नही है
इनको पाकिस्तान भगाओ

जीवन में रिश्तों पर कैसे
काले बादल छाये हैं
डिजीटल हो गई सारी दुनिया
रिश्ते हुऐ पराये है
मन में चाहे जहर भरा हो
फेसबुक पे लाईक तो बनता है
व्हाटस अप पे ही हाय हेलो 
कर सबके सब बौराये हैं
पहले फोन बहुत मंहगा था
फिर भी 'बात' हो जाती थी
पर फोन हुआ सस्ता जबसे
आवाज़ नही सुन पाये हैं
सब अपनी दुनिया में व्यस्त
हैं,किसको कौन पूछता अब
ऐसी डिजीटल दुनिया में तो
मेरा मन घबराये है
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 18/04/2018 

जिंदगी जिस ओर ले 
जाती रही चलता रहा
मैं तो दरिया सा हुआ
खामोश हो बहता रहा
घिर गया चहुँओर से 
मै जिंदगी की जंग में
किंतु मैं अभिमन्यु बनके
योद्धा सा लड़ता रहा
जानता परिणाम हूँ कि
हार जाऊंगा मगर
मैं समय के मस्तकों 
दस्तख़त करता रहा
साथ कोई दे या न दे
जिंदगी के इस सफर में
कभीअर्श पे,कभी फर्श पे
मैं दरबदर फिरता रहा
फिर कभी झंडा गडे़गा
और बुलंदी फिर मिलेगी
बस इसी विश्वास के ख्वाबों
के बीच पलता रहा
      ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
       सांय:7 बजे 18/04/2018

बहुत ख्वाहिश है मुझे 
आसमां में उड़ने की
पंख फैलाने दो मुझे
और उड़ जाने दो
न रोको रास्ता मेरा 
तुम दीवार बन कर
मैं तो खुशबू हूँ फिजाओं
में बिखर जाने दो
मेरे अंदर बला का
हौसला है
मैं अब ऊंचा उडूंगा
ये मेरा अब फैसला है
मैं खुद अकेला ही 
लडूंगा  मुश्किलों से
है इक मौका,ज़रा ताकत
को आज़माने दो
   मैं तो खुश्बू हूँ........ 
मेरा मौला सहारा देने
को खड़ा है
ग़र कदम डगमगाये
थाम लेने को खड़ा है
ये इम्तिहां मेरा है,मुझे
पास तो हो जाने दो
    मैं तो खुश्बू हूँ........ 
अपने किरदार की अज़मत
को बनाये रखिये
बहुत कालिख है दामन
को बचाये रखिये
बदलते चेहरों की बड़ी
भीड़ है साहिब
अपनी पहचान को मुमकिन
सा बनाये रखिये
ये अजब सा दौर है,खुद को 
बचाके चलना है
जु़बां औ लफ्जो़ं की एक
लाईन मिलाके चलिये
वजू़द इंसानियत का खत्म
होता जा रहा है
तकाजे़ वक्त है इसको 
संभाल कर रखिये
मेरे मालिक तू अपना पता दे दे
मुझको जीने की कोई वजह दे दे
उम्रभर तुझको ढूंढा किये हर जगह
मेरे दामन में निगाहे करम दे दे
ना ऐशो आराम मांगा कभी
ना शोहरत औ नाम मांगा कभी
जुस्तजू ही रही तेरे दीदार की
रुबरु अपने ला एक रहम दे दे  


है कौन यहां जो मेरी 
पेशानी को पढ़ सके
कुछ दर्द हम कहें,
कुछ वो समझ सकें
सब अपनी-अपनी 
फिक्रों में उलझे हुऐ से हैं
है कौन जो अब अनकही
पीड़ा समझ सके
खुदगर्जियों के दौर में
दम तोड़ती उम्मीद है
मौला मेरे ,अब तू मेरा
दुखडा़ समझ सके
हम तो बिकने को तैयार थे
चौराहों पर
लेकिन हर खरीदार की 
औकात हमसे कम निकली 

हवायें रुख़ बदल लेंगी
अगर हम ज़िद पे आ जायें 
सियासत भी दहल जाए
अगर हम ज़िद पे आ जायें 
हमारे हौसले के आगे 
ये संसार झुक जाये
मुकम्मल है यकीं इतना 
अगर हम ज़िद पे आ जायें 
है ज़िद ये आंधियों की
वो हमारा घर उजाड़ेगी
मेरा गुरूर है कि वो
हमारा क्या बिगाड़ेंगी
लगा लें ज़ोर कितना भी
न तिनका उड़ने देंगे हम
मुझे रब़ का सहारा है
उन्हें चलने न देंगे हम
कि जिनका नामलिखने
से पत्थर भी तैर जाते हैं
निगाह जिनकी तिरछी हो
तो समंदर सूख जाते हैं
नहीं डरता हूँ इस कारण
मैं आंधी और बवंडर से
मैं उसका नाम रटता हूँ
तो बवंडर काँप जाते हैं
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
03/08/2016 सायं 7 बजे 
ह्रर जर्रे -जर्रे में उसकी
रहमत का नूर बरसता है
उसपे मेहर हो जाती जो
उसके द्वार सिसकता है
वो तो देने को बैठा है
जो चाहो वो मांगो तुम
वो तो तेरी नियत देखता
और हर बात समझता है
एक बार भिखारी बन जाओ
दर जाओ सवाली बन करके
और करो गुनाहों से तौबा
वो तुझपे करम बख्शता है
वो मालिक सारी दुनिया का
पर प्रेम का भूखा है लेकिन
मीरा की तरह गर प्रेम करो
तो तुमपे जान छिड़कता है
ग़र स्वयं तुम्हें अनुभव करना
हर कण में उसे महसूस करो
वो अदभुत,और अलौकिक है
उससे संसार महकता है
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८अगस्त २०१४, रातः११ बजे
आँसुओं से जो आगाजे़ महफिल हुआ
बाखुदा ,एक समंदर नज़र आ गया
एक तो पहले से ही,दिल के कमजो़र थे
फिर टूट के यूँ बिखरना कहर ढा गया
कोशिशें भूलने की, कई बार की
हर दफा़ तेरा चेहरा नज़र आ गया
बेवफाई की चर्चा चली जब कहीं
अक्स तेरा जे़हन में उतर आ गया
किस कद्र तुमने लूटा,मेरे दिल को यूँ
तेरी हालत पे मुझको तरस आ गया
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
रात्रि:9:30 बजे 21/08/2018
अहले दुनिया से यूँ ही परेशां हैं हम
अब न छेडो़ मुझे, मैं बिख़र जाऊंगा
जिंदगी चंद लम्हों की बाकी है फिर
बनके खुश्बू फिजा़ं मे बिखर जाऊंगा
इतना आसां नही है भुलाना मुझे
याद बनके जेहन में उतर जाऊंगा
तेरे दर से मिली अबकी ठोकर अगर
बनके फिर से सवाली,किधर जाऊंगा
नही चाह दौलत की मुझको रही,
मैं तो 'मुफ़लिस' ही रहकर गु़ज़र जाऊंगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
रात्रि:10:30 बजे 21/08/2018
अगर जो साथ चलो
दिल को तसल्ली आये
एक बुझते हुऐ दिये
में रोशनी आये
तुम्हारे नाम को आयत
की तरह पढ़ता हूँ
इसी बहाने से,थोडी़
सी इबा़दत आये
सुकूं होगा सुपुर्दे
खा़क़ मुझको होने में
तुम्हारी आँख सेआँसू
अगर निकल आये
रस्में दुनिया ही सही
फातिहा पढ़ जाओ अगर
हमारी कब्र पे रौनक
ज़रा नज़र आये
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
प्रात:9:30 बजे 22/08/2018
तेरे आगोश में सर रख़
के रोना चाहता हूँ
बहुत कुछ खो चुका हूँ
अब न खोना चाहता हूँ
बचा है वक्त कितना
है ना ये मालूम मुझको
जितना बाकी बचा है
खुलके जीना चाहता हूँ
दुआ मेरी यही है तुम
हमेशा मुस्कुराओ
तुम्हें यूं देख कर मैं
मुस्कुराना चाहता हूँ
मिसाल जिंदगी बन
जाये मेरी आशिकी में
तुम्हें होठों पे लाके
गुनगुनाना चाहता हूँ
जो'मुफलिस' मौत भीआये
अगर राहे मुहब्बत में
कसम से मौत भी मैं
शायराना चाहता हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सांय:5:30 बजे 22/08/2018