दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Friday, August 16, 2019

मध्यम वर्ग
   ना जाने कितने जन्मों के
  पाप काटता मध्यम वर्ग
  सुबह शाम अभिमन्यु जैसा
  चक्र भांजता मध्यम वर्ग
  सबकी सुनना,कुछ ना कहना
  मजबूरी है, हंसते रहना
  छोटी चादर के भीतर ही
  पाॅंव फैलाता मध्यम वर्ग
  बच्चों को स्कूल भेजना
  कभी बेटी की शादी की
  सारे दिन चिंताओं के
  नित बोझ उठाता मध्यम वर्ग
  खीझा खीझा सा चेहरा है
  उडी़ उड़ी सी रंगत है
  तिनका तिनका आय जोड़के
  घर बनवाता मध्यम वर्ग
  निम्न वर्ग सा जी नहीं सकता
  उच्च वर्ग से प्रतिस्पर्धा
  दो वर्गों के बीच में फंसकर
  पिसता जाता मध्यम वर्ग
  बीवी बच्चे और अधिकारी
  सब इस पर पड़तें हैं भारी
  यस सर,यस मैडम कहने में
  उम्र बिताता मध्यम वर्ग
 
  ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांयः 6 बजे 16/08/2019

Monday, March 25, 2019

कोई गिला नहीं है,ना कोई है रंजोगम़
बस तेरी बेरुखी से, आँखें हैं थोड़ी नम
अपनी जगह पे तुम भीसही,मैं भी सही था
फिर किस वजह से अपने,रिश्तों ने तोडा़ दम

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    दोपहर:2:30 बजे 14/3/2019

मेरा सुकून तुमने गवारा नहीं किया
फिर भी हमने तुमसे किनारा नहीं किया
मैं जानता हूँ तुमने मेरा घर जला दिया
चुप रह गया पर तुम पे इशारा नहीं किया
सब सह गया हूँ,तुमसे मोहब्बत के वास्ते
ऐसा जुनूने इश्क भी दोबारा नहीं किया

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    दोपहर:2:30 बजे 14/3/2019
उमड़ चुका है अब सावन इन आँखों मे
रोको मत ,इन अश्कों को बह जाने दो
खामोशी के साथ जुबां को सीकर तुम
 कह ना सके जो लफ्जो़ं में कह जाने दो
समय सगा सा नहीं किसी का कभी हुआ
नई इबारत फिर से अब लिख़ जाने दो
मैने मुठ्ठियों से रेत को
फिसलते हुए देखा है
मंजिलों को हाथ से
छिटकते हुए देखा है
वो झूठ कहता है कि
पत्थर का जिग़र रखता हूँ
तन्हा रातों में उसको भी
सिसकते  हुए देखा है
हमारी कब्र पे ना रोज़ रोज़ आया करो
यूं आशिकी का दर्द और ना बढा़या करो
तेरे नाम पे ही खत्म हुई थी ज़िंदगी मेरी
मेरे हाल पे तुम ऐसे ना मुस्कुराया करो
मोहब्बत में तेरी,गज़लें जो मैंने लिखी हैं
है इल्तिजा़ की कभी उनको गुनगुनाया करो
हमारे दिल के कुछ एक ज़ख्म अभी ताजे़ हैं
कसम खुदा की तुम्हें,मत कुरेद जाया करो
ये "मुफलिसी" ही मेरी उम्र भर की दौलत है
सरे बाज़ार यूं सबको नहीं बताया करो
     ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    दोपहर:2:30 बजे 13/3/2019


आते जाते रहना तुम सब
ये स्कूल तुम्हारा है
सफ़ल रहो जीवन में हर क्षण
ये आशीष हमारा है
अपने जीवन का तुमने,यहाँ
अदभुत् समय बिताया है
बचपन बीता खेल खेल में
पढा़ लिखा कुछ पाया है
अब आगे ही बढ़ते रहना
ये ही लक्ष्य तुम्हारा है
       सफल रहो.........
पढे़ लिखे और हँसी ठिठोली
मिलकर तुम सब साथ किये
थोड़ी बहुत शरारत जब की
हम भी तुमको डाँट दिये
स्मृतियों का गुलदस्ता ये
अब से हुआ तुम्हारा है
       सफल रहो.........
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
चलो जवानों खुली छूट है,
आगे अब बढ़ जाने का
मौका,अबकी मिला तुम्हे
इस्लामाबाद तक जाने का
कलम करो सिर अज़हर का
हाफि़ज को छलनी कर डालो
दुनिया के नक्शे से अबकी
पाकिस्तान मिटा डालो
गद्दारों को खींच खींच कर
कुत्तों जैसा मारो तुम
हुर्रियत के हर एक नेता के
अब भूसा भर डालो तुम
मत भूलो कि तेरे पीछे
मोदी जैसा पी.एम है
पाकिस्तान अगर मिटे तो
गला कटे भी क्या गम है
विधवाओं की चीखों ने
अब रो रो तुम्हें पुकारा है
पाकिस्तान मिटा आना
बस ये ही लक्ष्य तुम्हारा है
रखो लाज भारत माता की
इसके आसूँ पोछो तुम
खत्म करो ये किस्सा अबकी
जी भर होली खेलो तुम

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:8:30 बजे 16/2/2019
पुलवामा का बदला लेना,
नैतिक जिम्मेदारी है
एक के बदले,सौ मारें
अब ऐसी कसम हमारी है
बढो़ जवानोंआगे बढ़कर
फिर से सीमा पार करो
दुश्मन की छाती को रौंदो,
फिरसे धरती लाल करो
तांडव ऐसा कर दो अबकी
पाकिस्तानी काँप उठे
कलम करो सिर अजहर का
आतंकी रुहें काँप उठे
गोली हाफिज को मारो
और बचे खुचे भी साफ करो
इतना भीतर घुस जाओ की
सीमा नयी बना डालो
आधे भारत के नक्शे को
तुम फिर से पूर्ण बना डालो
इतिहास रचो, नये भारत का
तुम फिरसे अब निर्माण करो
पाकिस्तानी नक्शे को तुम
अब दुनिया से साफ़ करो
है कसम भवानी की तुमको कि
 तब तक चैन ना पाना होगा
हाफिज सईद की गर्दन को
भारत में काट के लाना होगा

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:8:30 बजे 14/2/2019
साथी कितनी दूर गये की
वापस आना मुश्किल है
हर पल तिल तिल कर जीना
अब उम्र बिताना मुश्किल है||
तेरी यादों की पुरवाई
जब जे़हन में चलती है
नयनों में आँसू की नदियां
तब तब और उमड़ती हैं
बाँध सब्र का कब टूटे
ये समय बताना मुश्किल है||
   साथी कितनी दूर गये....
अक्सर यही सोचता हूँ कि
कुछ तो कह कर जाते तुम
कुछ तो मन के भेद खोलते
कुछ तो राह दिखाते तुम
छोड़ गये यूं बीच भंवर की
पार लगाना मुश्किल है||
     साथी कितनी दूर गये....
सब कुछ पहले ही जैसा
पर तेरी कमी अख़रती है
घर के दर दीवारों पे तेरी
खुश्बू अभी महकती है
कितना भीतर से टूटा हूँ
अभी बताना मुश्किल है||
     साथी कितनी दूर गये....
हर मौसम बेमानी लगता
हर रंग फीका लगता है
दिन तो कैसे ही कट जाता
रात्रि पहर नहीं कटता है
जाने कितनी अब दूरी है
जल्दी मिलना मुश्किल है||
    साथी कितनी दूर गये....
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:9:30 बजे 29/1/2019
दूरी स़फर की मुझसे ना
अब पूछ जिंदगी
गुज़रा कहाँ कहाँ से मैं
तेरी तलाश में
टूटा हूँ कई मर्तबा कुछ
इस तरह से मैं
 कि बिख़रा है कतरा कतरा यूँ
तेरी तलाश में
अपनी ही मय्यत कब तलक
काधों पे ढोयेंगे
 कुछ रहगुज़र दिला दो अब
तेरी तलाश में
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:9:30 बजे 29/1/2019
पंख लगा कर दिन बीतेऔर
बीते छब्बीस साल सनम
दुआ यही है ईश्वर से अब
साथ रखे वो जनम जनम
कितनी खट्टी मीठी यादें
लम्हें साथ गुजा़रे हैं
जीवन डगर कठिन हो कितनी
हर पल साथ तुम्हारे हैं
छब्बीस वर्षों की स्मृतियां
अब भी मन में छाई है
तेरे हाथों की वो मेंहदी
जैसे अभी रचाई है
जब तक ये ब्रह्मांड रहे औ
जब तक सूरज चाँद रहे
कभी जुदा ना हम तुम हों
और कई जन्मों का साथ रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:11:30 बजे 21/12/2018
किसके थे हनुमान,प्रश्न ये हुआ खडा़ हुआ
हर मजहब अब इसी बात पर अडा़ हुआ
तर्क कुतर्क विधानसभा,संसद में जारी
हनुमत जी को दत्तक करने की तैयारी
वोट की खातिर जाति,बाँट भी चैन ना आया
नेताओं ने सबसे सस्ता,अब भगवन को पाया
सत्ता की खातिर ये लोभी क्या कर जायें
जाता है तो देश , भाड़ में जाता जाये
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    प्रात: 7:30 बजे 21/12/2012
अपनी हालत पे अब शर्म आने लगी
जिदंगी आईना जब दिखाने लगी
मौत भी अब मयस्सर नहीं हो रही
जाने नज़रें क्यूँ मुझसे चुराने लगी
धड़कने बेवजह किसलिये चल रही
पलकें झुकने लगी, नींद आने लगी
कोई शिक़वा नहीं है किसी से मुझे
जिस्म में रुह अब छटपटाने लगी
है ये वादा मेरा,फिर मिलेंगे कभी
वक्ते रुखसत है अब,जान जाने लगी
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    रात्रि: 11:30 बजे 20/12/2018
कहानी दिल की मैं
लफ्जो़ं में ढाल लेता हूँ
बस इस तरह से मैं
खुद को संभाल लेता हूँ
सब अपनी अपनी ही
दुनिया में खोये बैठे हैं
मैं भी तन्हाइयों में
दिन गुजा़र लेता हूँ
मिटा के खुद को तेरे
घर में रोशनी की है
इसी सुकून में रातें
गुजा़र लेता हूँ
कभी तो रोशनी मेरे
भी दर पे आयेगी
बस यही सोच कर
चौखट बुहार लेता हूँ
हमारी सांसे भी दम
तोड़ने पे कायम है
किसी तरह से कुछ
मोहलत निकाल लेता हूँ

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 5:30 बजे 18/12/2018
हम भी उड़ जायेंगे इक
रोज परिंदों की तरह
खाली पिंजरे में फिर तुम
बस हमारा अक्स ढूंढोगे
बुलाना लाख चाहो तुम,
मगर फिर हम ना आयेंगे
फिर हम उस दुनियां में घूमेंगे
तुम इस दुनियां में ढूंढोगे
मेरी आवाज़ तन्हा रातों में
तुमको रुलायेगी
बडी़ शिद्दत के साथ तुम
मेरी आवाज़ ढूंढोगे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 9:30 बजे 23/11/2018
चादर कोई उढा़ दो
मेरी कब्र पे आकर
ठंडक बहुत सता
रही है आजकल हमें
जबसे गए हैं आप यहां
दो कतरे गिरा कर
उसकी नमी भी आज
तक गला रही हमें
जबतक तुम्हारा साथ
था ,न कद्र की कभी
यादें तन्हाईयों में अब
रुला रही हमें
निगाहों में हमने तुमको
गिरफ्तार किया था
ये सच है बाखुदा कि
तुमसे प्यार किया था
रुठे कभी भी जो तुम
हमने मनाया दिल से
बेहद और बेशुमार ही
बस प्यार किया था
धड़कन,तुम कब बने
कब जान बन गये
ये दिलों के रास्तों को
कब पार किया था
एहसास तेरी रुह का
अब तक भिगो रहा है
कैसे मोहब्बतों ने
इज़हार किया था
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 9:30 बजे 12/11/2018
फर्श से अर्श तक जाने में
वक्त लग जायेगा
पर गुरूर एक ही झटके
में सिर चढ जायेगा
उसकी रहमत का नजारा
जिस वक्त भी समझेगा तू
उस खुदा की बन्दगी में
तेरा सिर झुक जायेगा
इस जमीं से उस फलक तक
बस खुदा का नूर है
आदमी है इक प्यादा
वक्त से मजबूर है
द्रोपदी सा तुम पुकारोगे
उसे जिस रोज तुम
क्रष्ण बनके वो तुम्हारी
लाज रखने आयेगा
मुफलिसी के वक्त केवल
साथ मेरे 'वो' रहा
मेरी अंगुली को पकड के
वो मेरा रहबर रहा
कर रहम मौला मेरे
कहके जब चिल्लाओगे
बन फरिश्ता वो तुम्हारी
पीर हरने आयेगा
     ऋषि राज शंकर "मुफलिस"
      ९ बजे रात्रिः ७ अक्तूबर २०१५
बेरुख़ी की हद से ज्यादा यूँ ना जाइये
हो सके तो देख करके मुस्कुराइये
हम तो अपने आप से शर्मिंदा हैं
जाने किस लिए अभी भी ज़िंदा हैं
जितने हो शिकवे गिले दिल से मिटाइये
हो सके तो.......
मेरी इक खता को माफ़ कीजिये
जिंदगी के रंग जी भी लीजिये
प्यार से महकी हवा फिर से चलाइये
हो सके तो.......
बहके बहके मेरे भी हैं अब कदम
थाम लो अब हाथ ,भी मेरे सनम
खुशनुमा मौसम हुआ है गुनगुनाइये
हो सके तो.......
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 9:30 बजे 03/10/2018
बहुत देर हो गई,
बरसते बरसते
इन आँखो से आँसू
छलकते छलकते
मगर अपनी जिद में
नहीं तुम भी आये
निकलता रहा दम,
तड़पते तड़पते
निगाहों से कई बार
इतनी पिलायी
कदम लड़खड़ाये,
बहकते बहकते
हमें आरज़ू थी कि
पहलू में तुम हो
जवाँ रात हो फिर
महकते महकते
थी किस्मत हमारी भी
मुफ़लिस के जैसी
बिता डाला जीवन
घिसटते घिसटते
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 5:30 बजे 25/09/2018
✍�✍�✍�✍�✍�✍�
जतन कर इतनी शिद्दत से
कि रब़ मजबूर हो जाये
मिटा के फ़ासले को हर
तुम्हारे पास आ जाये
मेहर जिस रोज़ उसकी
होगी तेरा नूर चमकेगा
ज़माना ख़ुद तुम्हारे पास
आ जाने को तरसेगा
मगर उस रोज़ तुमको कोई
भी ख़्वाहिश नहीं होगी
तुम होगे ऐसी मस्ती में
तेरा हर रोम महकेगा
मज़ा आयेगा उस रोज़
से तुमको फ़क़ीरी में
रुहानी आलम़ होगा तब
तभी मुफ़लिस ये बहकेगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
25/09/2016सायं 7 बजे
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
है हौसला कि मौत भी
हारेगी एक दिन
रुख़सती का वक्त भी
पूछेगी एक दिन
जायेंगे इस जहाँ से हम
कुछ मुस्करा के ऐसे
जाता हो शहंशाह कोई
दौलत लुटा के जैसे
मेरी शख़्सियत को तुम
भी न भूल पाओगे
रोओगे मेरी कब्र पे
खु़द को भुला के जैसे
बहुत मायूस हैं चलो
यूँ ही दिल को बहलायें,   
कहीं से एक खिलौना
फिर ढूंढ कर लाऐं
ज़रा सा खेलेंगे फिर
वो भी टूट जायेगा
मेरा क्या अपना है
जो है वो छूट जायेगा
बिखरके टूटना,खिलौने
का ये मुकद्दर है
जो नसीब़ उसका है
वो उसके साथ जायेगा
हम भी गुमनाम अंधेरों
में छिप के बैठे हैं
दिये की रोशनी खुद
ही बुझा के बैठे हैं
बस इक उम्मीद इस
दिल में जगा के बैठे हैं
कभी तो कोई फरिश्ता
नज़र में आयेगा
मेरा क्या अपना......
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 6:30 बजे 21/09/2018
अपनों के बीच खुद की
मैं पहचान ढूंढता हूँ
दुनिया में भीड़ है बहुत
इंसानियत नहीं
हैवानियत के मेले में
इंसान ढूंढता हूँ
यूं तो बहुत ही शोर है
जीवन के शहर में
एक अनकही सी अनसुनी
आवाज़ ढूंढता हूँ
चर्चे बहुत ,मेरे हुऐ
ख़बरों के दौर में
उस पर सितम है खुद
की मैं पहचान ढूंढता हूँ
ना जाने कब कटेगी अब
साँसों की ये पतंग
बेईमान ज़िंदगी में अब
ईमान ढूंढता हूँ

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 6:30 बजे 20/09/2018
रुह को सुकून मिल गया
अजमेर जाकर आके
ख्वाजा के दर पे जाके
और झोलियां फैला के
आंगन में उसके हर दम
रहमत बरस रही है
हम भी वहां नहा ले
चादर को इक चढ़ा के
बैचेन दिल को मेरे
उस वक्त करार आया
चौखट पे उनकी आके
सजदे में सिर झुका के
हर शय की मन्नतों को
पूरा वो कर रहे हैं
गरीब नवाज़ हैं वो
झोली को भर रहे है
मुफलिस भी खुश हुआ है
दीदार उनके पा के

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
 ३१अगस्त २०१४, दोपहरः२ बजे
रफ्ता रफ्ता खत्म होती
जा रही है जिंदगी
आखिरी मंजिल के रस्ते
जा रही है जिंदगी
बीतता तो वक्त है कब
तक रहेगा ये गुमां
सच यही है खर्च होती
जा रही है जिंदगी
है हकीकत कब्र जब
क्यूं इस कदर इतरा रहे
साथ अपने इस जहाँ से
कुछ ना ले के जा रहे
ये महल ये शानोशौकत
सब यहीं रह जायेगा
बेवजह दौलत को जोडे़
जा रही है जिंदगी
कौन जाने किस समय
पर मौत का दीदार हो
सामने आकर खडी़ हो
और आँखे चार हो
अलविदा कहने का शायद
वक्त तक भी ना मिले
किस कदर रफ्तार में
यूँ जा रही है जिंदगी

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात: 6:00 बजे 02/09/2018
दुनिया के रंजोग़म से
हम अब दूर हो गए
तुर्बत(कब्र)में जाके रहने
को मजबूर हो गए
अरसे के बाद नींद
मुकम्मल सी मिली है
शिक़वे गिले जितने भी
थे सब दूर हो गए
हासिल मिला था उम्र
भर का चंद मुठ्ठी खा़क
सब अपनी अपनी फिक्रों
में मशगूल हो गए
'मुफ़लिस' को कभी घर
ना दिया ऐ मेरे खुदा
दो गज़ ज़मीन देके
तुम भी दूर हो गए
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 9:00 बजे 31/08/2018
तुमसे बिछुड़ के मैं ना
कभी चैन पा सका
मंदिर बहुत थे,मैं ही
दिया ना जला सका
सब पूछते थे  मेरी
उदासी का सबब जब
लब पे तुम्हारा नाम था
पर ना बता सका
एक ताज मैं बनवा सकूं
हसरत दफ़न हुई
मुमताज़ की फोटो का
पता पा नहीं सका
मुमकिन नहीं था प्यार
मैं शर्तों पे कर सकूं
बस इस वजह से प्यार
को जता नहीं सका
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सायं: 6:00 बजे 31/08/2018