दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Sunday, April 26, 2020

कोरोना है महामारी हमें इसको हराना है
भले सीमित हो संसाधन, हमें इसको भगाना है
    कोरोना है महामारी हमें इसको हराना है
घर में रहिए,भला होगा,
नहीं फिर कुछ बुरा होगा
यही मंतर सही होगा,
यही मंतर सही होगा,जिसे सबको बताना है
     कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना
नियम सरकार के मानों
बीमारी है बड़ी जानों
दवाई कुछ नहीं मानों
दवाई कुछ नहीं मानों,मगर सबको बचाना है
     कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
ये संकट जब बड़ा होगा
सगा ना तब खड़ा होगा
अकेला तू पड़ा होगा
अकेला तू पड़ा होगा,अकड़ फिर क्यूं दिखाना है
    कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
ये डाक्टर औ पुलिस वाले
सभी कर्मठ हैं मतवाले
यही जीवन के, रखवाले
यही जीवन के,रखवाले,इनका करजा चुकाना है
      कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     रात्रि 11बजे 22/04/2020
दुनिया बनाने वाले,क्या तेरे मन में समाई
काहे महामारी बनाई,तूने काहे कोरोना बनाई
     मरतें हैं प्राणी सभी,कष्टों में कितने
     नहीं देता साथ कोई,अपने हों कितने
     रहना पड़े अकेला, अंतिम वखत में
     जाती है अर्थी केवल लाॅरी में लदके
गुपचुप तमाशा देखे,वाह री तेरी खुदाई
काहे महामारी बनाई,तूने काहे कोरोना बनाई
     काहे ना कोई दूजा रस्ता सुझाया
     घर में ही रहना  सुरक्षित बताया
     दूरी उचित रखनी तूने बताया
     तेरी माया समझ में ना आया
ना तो इलाज कोई,ना तो है कोई दवाई
काहे महामारी बनाई,तूने काहे कोरोना बनाई
     अरजी है प्रभु लाज इतनी सी रख लो
     मानव हैं बेटे तेरे,रक्षा तो कर लो
     दुनिया बचा लो अपनी,भगवन ये सारी
     संकट में आई सारी सृष्टि तुम्हारी
     तेरी कसम है तुमको,सुन लो अब मेरी दुहाई
काहे महामारी बनाई,तूने काहे कोरोना बनाई
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 11बजे 18/04/2020
कोरोना महामारी बड़ी
पार इससे हमें पाना पड़ेगा
देश संकट में आया बहुत
मिलजुल कर ही बचाना पड़ेगा
       हाथ धोना बहुत बार है
       दूरी से ही अभी प्यार है
       घर से बाहर जो निकलो कभी
       मास्क सबको लगाना पड़ेगा
सेनिटाइज़ करो हर दफ़ा
बात मानो ना होना खफ़ा
घर में रहना उपाय बड़ा
यही सबको बताना पड़ेगा
         छिपके होगा नहीं कुछ भला
         डाक्टरों से मिलो तो भला
         हैं बीमारी है ये समझो ज़रा
         लक्षणों को बताना पड़ेगा
दूसरों का सहारा बनो
भूखे का तुम निवाला बनो
दूर होगा ये संकट तभी
दया धर्म निभाना पड़ेगा
  ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 10बजे 18/04/2020
दुनिया कितनी सिमट गई है,
घर की चारदीवारी में
उम्मीदें सिमटी बैठी हैं
बेबस और लाचारी में
        सांसें कितनी मंहगी हो गई
        कोरोना महामारी में
        घर के अंदर रहो सुरक्षित
        ये महामंत्र महामारी में
पूरी दुनिया अकड़ रही थी
बड़े बड़े परमाणु पर
किंतु सृष्टि सिमट रही है
छोटे से किटाणु पर
      इस छोटे से किटाणु ने
      पूरा विश्व हिला डाला
      महाशक्ति घुटनों के बल है
      ऐसा प्रलय मचा डाला
पंचतत्व से बना सरीरा
हम उनको ही भूल गये
भौतिकता विज्ञान में फंस के
मानवता को भूल गये
     तब प्रकृति स्वयं अपनी रक्षा
     को देखो अब मजबूर हुई
     मिटा प्रदूषण धरती का अब
     वायु कितनी शुद्ध हुई
धरा करेगी स्वयं संतुलन
अब ये बात समझ जाओ
मानव बनकर रहो धरा पर
और प्रकृति को दुलराओ
  ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 7बजे 09/04/2020
सब कुछ मिट जायेगा,बाहर ना डोल
कोरोना घर के बाहर, दरवाज़ा ना खोल
तो घर में रहना प्यारे,घर में रह कर बोल
मत लेना पंगा बिल्कुल,ये जीवन अनमोल
    महामारी ये पूरे जग में बढ़ती जाये
    सभी हुए लाचार कोई भी बच ना पाये
ये बिरहा ये दूरी,लाक डाउन की मजबूरी
फिर तो हम भारतीय हैं,काहे को घबराये
तरमपम हारेगा कोरोना संग मेरे तू बोल
जीतेंगे हम इसको विश्वास यही अनमोल
  सब कुछ मिट जायेगा,बाहर ना डोल
कोरोना घर के बाहर, दरवाज़ा ना खोल
कोरोना अब गली गली में पांव पसारे
कठिन नियम में जीवन, हम सब आज गुज़ारे
  ये संयम ना टूटे,दया धर्म भी ना टूटे
नया सबेरा आने को है साथ नहीं छूटे
तरमपम निश्चित हम जीतेंगे,ये वचन मेरे अनमोल
सकल विश्व में गूंज उठेंगे, जय भारत के बोल
सब कुछ मिट जायेगा,बाहर ना डोल
कोरोना घर के बाहर, दरवाज़ा ना खोल
      ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     रात्रि 11बजे 23/04/2020
मेरी नई रचना

क्या करूं मैं आप सभी से प्यार करता हूं
कोरोना से हर घड़ी ,आगाह करता हूं
क्या करूं मैं आप सभी से प्यार करता हूं
 ये तो तांडव कर रहा दुनिया के मेले में
 सांसें छोटी हो गईं  इसके झमेले में
 घर में रहना है तुम्हें,फरमान करता हूं
       क्या करूं मैं आप सभी से प्यार करता हूं
  घर में रहना,मास्क लगाना,हाथ धोना है
  बस यही हथियार हैं, ये तो कोरोना है
  हारेगा संयम से ये , ऐलान करता हूं
         क्या करूं मैं आप सभी से प्यार करता हूं
  लाकडाउन ग़र खुले तो फिर ना बौराना
  तोड़ कर सारे नियम,घर से नहीं जाना
  ज़िंदगी अनमोल है, स्वीकार करता हूं
          क्या करूं मैं आप सभी से प्यार करता हूं
    ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     रात्रि 11बजे 23/04/2020

Wednesday, April 22, 2020

फिर कुछ नया.....
सजन रे झूठ मत बोलो गाने पर लिखा है:-

कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
भले सीमित हो संसाधन, हमें इसको भगाना है
    कोरोना है महामारी हमें इसको हराना है
घर में रहिए,भला होगा,
नहीं फिर कुछ बुरा होगा
यही मंतर सही होगा,
यही मंतर सही होगा,जिसे सबको बताना है
     कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना
नियम सरकार के मानों
बीमारी है बड़ी जानों
दवाई कुछ नहीं मानों
दवाई कुछ नहीं मानों,मगर सबको बचाना है
     कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
ये डाक्टर औ पुलिस वाले
सभी कर्मठ हैं मतवाले
यही जीवन के, रखवाले
यही जीवन के,रखवाले,इनका करजा चुकाना है
      कोरोना है महामारी, हमें इसको हराना है
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     रात्रि 11बजे 22/04/2020

Saturday, April 18, 2020

तेरे आगोश में सर रख़
के रोना चाहता हूँ
बहुत कुछ खो चुका हूँ
अब न खोना चाहता हूँ
बचा है वक्त कितना है
ना ये मालूम मुझको
जितना बाकी बचा है
खुलके जीना चाहता हूँ
दुआ मेरी यही है तुम
हमेशा मुस्कुराओ
तुम्हें यूं देख कर मैं
मुस्कुराना चाहता हूँ
मिसाल जिंदगी बन
जाये मेरी आशिकी में
तुम्हें होठों पे लाके
गुनगुनाना चाहता हूँ
जो'मुफलिस' मौत भीआये
अगर राहे मुहब्बत में
कसम से मौत भी मैं
शायराना चाहता हूँ

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:5:30 बजे 22/08/2018

जब भीअकेला खु़द को
मैं महसूस करता हूँ
तुम्हारी यादों को दिल में
मैं संजो के रखता हूँ
अहसास न किसी को हो
सीने में छिपे दर्द का
सभी का एहतराम
मुस्कुरा के करता हूँ
तेरी यादें मुझे
पुरवाईयों सी लगती हैं
मीठे मीठे दर्द को
कुछ और बढा़ देती हैं
ऐसी लज़्जत को मैं
बेहद संभाल रखता हूँ

हमेशा इक दूसरे के हक में
दुआ करेंगे, ये तय हुआ था
मिलें या बिछुडे़ एक दूसरे से
वफा़ करेंगे,ये तय हुआ था
कहीं रहो तुम, कहीं रहें हम
मगर मोहब्बत रहेगी कायम
जो ये खता है तो उम्र भर ये
खता करेंगे, ये तय हुआ था
जहाँ मुकद्दर मिलायेगा अब
वहां मिलेंगे, ये शर्त कैसी
जहाँ मिले थे,वहीं हमेशा
मिला करेंगे, ये तय हुआ था
लिपट के रोलेंगे जब मिलेंगे
ग़म अपना अपना बयां करेंगे
मगर ज़माने से मुस्कुरा कर
मिला करेंगे,ये तय हुआ था
किसी के आंचल में खो गये तुम
बताओ,क्यूं दूर हो गए तुम
की जान देके भी हक वफा़ का
अदा करेंगे,ये तय हुआ था
***************************
तेरे दर से जो रोशन हुआ
मैं तो वो चिराग़ हूँ
न हवा में हौसला है
कि बुझा दे मेरी लौ को
जो फ़लक में है चमकता
मैं वो आफ़ताब हूँ
जो मैं हूँ ,वो तेरी हर दम
रहमत का नूर हूँ
जहाँ गुल महक़ रहे हों
ऐसा वो बाग़ हूँ
चाहता हूँ कबसे रहना
तेरी बारगाह में आके
यही तिश्नगी बुझा दे
जन्मों की प्यास हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:11:30 बजे 22/08/2018
अगर जो साथ चलो
दिल को तसल्ली आये
एक बुझते हुऐ दिये
में रोशनी आये
तुम्हारे नाम को आयत
की तरह पढ़ता हूँ
इसी बहाने से,थोडी़
सी इबा़दत आये
सुकूं होगा सुपुर्दे
खा़क़ मुझको होने में
तुम्हारी आँख सेआँसू
अगर निकल आये
रस्में दुनिया ही सही
फातिहा पढ़ जाओ अगर
हमारी कब्र पे रौनक
ज़रा नज़र आये

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:9:30 बजे 22/08/2018

आँसुओं से जो आगाजे़ महफिल हुआ
बाखुदा ,एक समंदर नज़र आ गया
एक तो पहले से ही,दिल के कमजो़र थे
फिर टूट के यूँ बिखरना कहर ढा गया
कोशिशें भूलने की, कई बार की
हर दफा़ तेरा चेहरा नज़र आ गया
बेवफाई की चर्चा चली जब कहीं
अक्स तेरा जे़हन में उतर आ गया
किस कद्र तुमने लूटा,मेरे दिल को यूँ
तेरी हालत पे मुझको तरस आ गया
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:9:30 बजे 21/08/2018

अहले दुनिया से यूँ ही परेशां हैं हम
अब न छेडो़ मुझे, मैं बिख़र जाऊंगा
जिंदगी चंद लम्हों की बाकी है फिर
बनके खुश्बू फिजा़ं मे बिखर जाऊंगा
इतना आसां नही है भुलाना मुझे
याद बनके जेहन में उतर जाऊंगा
तेरे दर से मिली अबकी ठोकर अगर
बनके फिर से सवाली,किधर जाऊंगा
नही चाह दौलत की मुझको रही, मैं तो 'मुफ़लिस' ही रहकर गु़ज़र जाऊंगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   रात्रि:10:30 बजे 21/08/2018


शिकस्त दरशिकस्त हम खाते रहे
फिर भी हर हाल में मुस्कुराते रहे
मेरी आवाज़ से उनको नफ़रत सी थी
उनपे गज़ले मग़र गुनगुनाते रहे
वो ना आये मगर मन्नतें कितनी की
फिर भी शिद्दत से उनको बुलाते रहे
हम तरसते रहे उनके दीदार को
वो दुपट्टे में मुखडा़ छिपाते रहे
ये मालूम है छुप छुप वो देखा किये
फिर भी मिलने से क्यूं कतराते रहे
जिंदगी इक तवायफ़ का कोठा हुई
नाचते हम रहे, वो नचाते रहे
वक्ते रूख़सत,अलविदा के समय
वो निगाहों में आँसू छिपाते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 26/05/2018

यूं ही हालात करवट बदलते रहे
हम न बदले मगर वो बदलते रहे
ना था मेरा कुसूर,और न कोई ख़ता
भीगते हम रहे ,वो बरसते रहे
तूफां,कई मर्तबा तो मेरे घर पे आये
हम भी बसते रहे फिर उजड़ते रहे
तुमको रुसवा करुं ऐसी मर्जी नही
इस वजह से लबों को हम सिलते रहे
ये और बात है कि अब भी खामोश हूं,
लेकिन सीने में शोले दहकते रहे
महफिलों में जाम जब कहीं भी चले
कुछ महकते रहे ,कुछ बहकते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 28/05/2018

गुरुर कत्ल कर रहा
रिश्तों का सरे आम
ग़र हो सके जो
आपसे रिश्ते बचाईये
बर्बादियों का एक ही
कारण बना गुरुर
जे़हन में इसके कीडो़
चुन चुन के मारिये

बरसों की दोस्ती का
कुछ ऐसा सिला दिया
मेरा ही कत्ल ,मेरे ही
मुंसिफ़ ने कर दिया

    *#जीवन एक युद्ध क्षेत्र*#
ये सच है,जीवन युद्ध क्षेत्र
हर पल इसमें लड़ना होगा
आनंद कभी,कभी पीडा़ हो
सहना होगा,जीना होगा
दीपक की तरह है, हर जीवन
कभी बुझती लौ कभी बढ़ती लौ
अनगिनत बवंडर छा जायें
तूफानों मे जलना होगा
यह कर्म क्षेत्र,यह धर्म क्षेत्र
भागो तो भाग न पाओगे
इसमें लड़कर संघर्ष करो
अर्जुन की तरह रहना होगा
ये ऐसा एक समंदर है
इसकी लहरें ऊंची नीची
हर ज्वार भाट सहते सहते
पतवार तुम्हें खेना होगा
काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह
ये पांच द्वार का च्रकव्यूह
तोडो़ इन सारे द्वारों को
फिर मोक्ष मार्ग चलना होगा
हम शून्य साथ में लाये थे
और शून्य साथ ले जायेंगे
जीवन का अन्त है एक शून्य
इसमें विलीन होना होगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 24/05/2018

अगर प्राईवेट नौकरी करना
तो मैं ये समझाता हूँ
कैसे इसमें सफ़ल बनो
ये गुरुमंत्र बतलाता हूँ
"यस सर" तेरा गुरुमंत्र है
बस इसको जपते जाओ
सूरज चाहे उगे जिधर भी
"यस सर" बस कहते जाओ
खुद्दारी की ऐसी तैसी
अपनी सोच मिटा डालो
"यस सर" कहते कहते अपना
जीवन सफल बना डालो
बाॅस की मर्जी में ही तेरी
हर खुशियों की चाभी है
और इसका उल्टा करने
छिपी हुई बरबादी है
कुत्ते जैसा जीवन जीकर
जीवन सफल बना डालो
बिना पूंछ के "यस सर" कहके
अपना काम चला डालो
स्वाभिमान ,खुद्दारी भूलो
क्या इसको ले चाटोगे?
ये शब्द बड़ा उत्पीड़न देंगे
कब तक खुद से भागोगे
राशन,वेतन,और नौकरी तीन
तीन माह की पास में रखना
प्राईवेट नौकरी तब करने की
अपने जिग़र में दम रखना
अग़र समय पे न पहुँचो तो
वेतन झट, कट जाता है
चमचागीरी कर लेने से
इंक्रीमेंट लग जाता है
समझौता खुद के वजूद से
करने को तैयार करो
जीवन मे खुशियां पानी तो
बस मालिक से प्यार करो
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:6:30 बजे 11/05/2018
गैरमुकम्मल सी है तू जिंदगी...और वक्त की है बेतहाशा रफ्तार,रात इकाई,नींद दहाई,ख्वाब सैंकडा,और दर्द हजार फिर भी जिँदगी तू है मजेदार

कौन है,
जिसे कमी नहीं है.
आसमां के पास भी,
ज़मीं नहीं है..✍🏻

ज़िंदगी की कड़वी हकीकत
"कद्र और कब्र"
कभी जीते जी नहीं मिलती!!

जिस रोज़ से खुदगर्जियों से हम प्यार करेंगे
उस रोज़ से लोग हमको बद् दिमाग कहेंगे

इंसान का चेहरा भी कुछ कुछ प्याज़ जैसा हो गया,छीलियेगा जितना इन्हें ,उतनी परतें उतरती हैं
माला में मोती दिख रहे
धागा नहीं दिखता
धागे के बिना कोई भी
माला नहीं बनता
देख कर मोती को
सब इतरा रहे हैं
त्याग धागे का सभी
बिसरा रहे हैं
लेकिन धागा जब
कभी टूटा अगर
गुरुर मोतियों का
बिखर जायेगा
सत्य के दर्शन
तभी हो जायेंगे
वजूद धागे का
नज़र आ जायेगा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 28/04/2018

कल रात में,ख्वाबों में
वो फिर से आ गये
माने नहीं,जख्मी जिग़र
फिर से दुखा गये
रिसते हुऐ जख्मों को
फिर हौले से कुरेदा
कुछ दर्द जब मुझको
हुआ तो मुस्कुरा गये
   ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 30/04/2018
मेरी हस्ती को समझो
ये तेरे बस की बात नही
शेर की ताकत गीदड़ समझे
ये गीदड़ की औकात नही

बहुत देर तक तन्हाई में
तुझपे गज़ल लिखता रहा
और आँसुओं का काफि़ला
इस दरमियां बहता रहा
हाँ,यकीनन अब भी तेरी
याद तड़पाती बहुत
सामने सबके हँसा पर
दिल में बस रोता रहा 
जीवन में रिश्तों पर कैसे
काले बादल छाये हैं
डिजीटल हो गई सारी दुनिया
रिश्ते हुऐ पराये है
मन में चाहे जहर भरा हो
फेसबुक पे लाईक तो बनता है
व्हाटस अप पे ही हाय हेलो
कर सबके सब बौराये हैं
पहले फोन बहुत मंहगा था
फिर भी 'बात' हो जाती थी
पर फोन हुआ सस्ता जबसे
आवाज़ नही सुन पाये हैं
सब अपनी दुनिया में व्यस्त
हैं,किसको कौन पूछता अब
ऐसी डिजीटल दुनिया में तो
मेरा मन घबराये है
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 18/04/2018

लामबंद हो रहे लुटेरे
इक 'चौकीदार' भगाने को
देश को रबडी़ जैसा खाने
की आस जगाने को
माँ के पप्पू को सपने में
रोज़ दिखाई कुर्सी दे
भारत की सेवा को तत्पर
ये भारत को ,खाने को
बबुआ-बुआ गले मिल बैठे
शिक़वे गिले मिटाने को
साम दाम औ दंड भेद से
सत्ता पाना परम लक्ष्य है
ये लंपट आतुर हो गए हैं
एक मंच पर आने को
छप्पन इंची सीने से डर
ये सबके सब बौराये हैं
नोटबंदी ने लूटा इनको
बरसों की जमा गंवाये है
देशवासियों अब तो जागो
इनको इनकी जगह दिखाओ
ये भारत के लायक नही है
इनको पाकिस्तान भगाओ
जिंदगी जिस ओर ले
जाती रही चलता रहा
मैं तो दरिया सा हुआ
खामोश हो बहता रहा
घिर गया चहुँओर से
मै जिंदगी की जंग में
किंतु मैं अभिमन्यु बनके
योद्धा सा लड़ता रहा
जानता परिणाम हूँ कि
हार जाऊंगा मगर
मैं समय के मस्तकों
दस्तख़त करता रहा
साथ कोई दे या न दे
जिंदगी के इस सफर में
कभीअर्श पे,कभी फर्श पे
मैं दरबदर फिरता रहा
फिर कभी झंडा गडे़गा
और बुलंदी फिर मिलेगी
बस इसी विश्वास के ख्वाबों
के बीच पलता रहा
      ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
       सांय:7 बजे 18/04/2018
रहने दो,मत कुरेदो,
मेरे दिल के घाव को
ऐसा न हो कि अश्के
समंदर निकल पड़े

दो बूंद तेरे अश्क जो
मेरे दामन में आ गिरे
ऐसा लगा कि दिल में
जलजला सा आ गया

चुपके से कहीं रो लें तो
दिल को सुकून आये
आखों के आंसू कब
तक छिपाते रहेंगे हम
कुछ तुम कहो,कुछ हम कहें
तब इक गज़ल बने
लफ्जो़ं का साथ कब तक
निभाते रहेंगे हम

मेरे मौला मुझे न ऐसे
आज़माया करो
मेरे हाथों से अपना दामन
न यूँ छुडा़या करो

मोहब्बत किसी शर्तों की
मोहताज नहीं होती
बेपनाह,बेइंतहा,बिना शर्त
औ बेआवाज़ होती है 
हर दिल अजीज़ सबका
दुलारा है लखनऊ
है जान निसार, प्राणों से
प्यारा है लखनऊ
तहजीब़ और अदब़ का
सितारा है लखनऊ
हिंदोस्तां का नूरे
बहारा है लखनऊ
जी जनाब़, आप ये
भाषा है लखनवी
चिकनकारी औ नवाबी
शान लखनवी
सारे जहाँ से अच्छा
हमारा ये लखनऊ
लखनवी तहजीब पर
सबको गुरुर है
शामे ए अवध का सबको
कुछ ऐसा सुरुर है
उमरावजां,हज़रत महल से
नवाजा़ है लखनऊ
कबाब़ पराठा,बिरयानी
है लखनऊ की शान
इसकी लज्ज़त,खुशबू से
महका है हिंदुस्तान
"मुफ़लिस" रईस सबका
दुलारा है लखनऊ
हर दिल अजीज़ सबका....
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
       सांय:7 बजे 15/07/2018
कल जब पत्नी के चश्मे
को पूजा घर में पाया
तब जा करके बहुत दिनों
का राज समझ में आया
एक ही चश्मा पत्नी भगवन
यूज़ कर रहे भाई
इस कारण मेरी हालत
उन्हें देती नहीं दिखाई
बहुत दिनों से मेरे भाग्य में
अन्धकार छाया था
शायद पत्नी का चश्मा मेरे
भगवन को भाया था
न पत्नी मेरी सुनती थी
न भगवन ही सुनते थे
पत्नी जी भी उदासीन थी
भगवन भी आँखें मूंदे थे
मेरे भाग्य का लेखा दोनों
ही न पढ़ पाते थे
देख हमारी दीन दशा
मन ही मन मुस्काते थे
भगवन उसके साथ मिल गए
मेरी एक न सुनते थे
जाने अपने मन में कैसा
ताना बाना बुनते थे
बैठा हूं मैं आस लगाये
कब भगवन उद्घार करे
पत्नी भी बेरुखी छोड़ के
जी भर मुझको प्यार करे
ऋषि राज शंकर "मुफ़लिस"
16/02/2017 रात्रि 10 बजे  
शून्य लेकर आये थे और शून्य में मिल जाओगे
उम्र भर का हासिल है कि शून्य लेकर जाओगे
जूझा किये जो उम्र भर,गठरी लिये इच्छाओं की
क्या पता है किस घडी़ में,खाक में मिल जाओगे
कह रहा हूँ इसलिए कि, दफ़न कर दो हसरतें
रुह को आयेगा सुकूं, अहसास उसका पाओगे
    ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
    प्रातः:6:30 बजे 18/5/2019

आते जाते रहना तुम सब
ये स्कूल तुम्हारा है
सफ़ल रहो जीवन में हर क्षण
ये आशीष हमारा है
अपने जीवन का तुमने,यहाँ
अदभुत् समय बिताया है
बचपन बीता खेल खेल में
पढा़ लिखा कुछ पाया है
अब आगे ही बढ़ते रहना
ये ही लक्ष्य तुम्हारा है
       सफल रहो.........
पढे़ लिखे और हँसी ठिठोली
मिलकर तुम सब साथ किये
थोड़ी बहुत शरारत जब की
हम भी तुमको डाँट दिये
स्मृतियों का गुलदस्ता ये
अब से हुआ तुम्हारा है
       सफल रहो.........
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
आनंद तुम्हें मिथलेश से है
मिथलेश तुम्हे आनंद मिला
जीवन की सुंदर बगिया में
पचास बरस का साथ मिला
वर पक्ष वधू पक्ष हर्षित थे
जब तुम दोनों थे एक हुऐ
मिकी-मीनू दो फूल खिले
बाबा का शुभ आशीष लिए
स्वर्णिम जीवन की गाथा को
एक स्वर्णिम सा अनुराग मिला!!!
       आनंद तुम्हें मिथलेश.....
खट्टे मीठे कितने अदभुत
हर लम्हां  साथ निभाया है
सादा सा जीवन रहा सदा
हर रिश्ता खूब निभाया है
ईश्वर की अदभुत कृपा हुई
इस स्वर्णिम दिन का साथ मिला!!!
   आनंद तुम्हें मिथलेश.....
मैं आज माँगता हूँ रब से
ये जोड़ी ऐसी  बनी रहे
हर जोडा़ मनाये पचास बरस
ईश्वर अनुकंपा बनी रहे
मैं भी बड़भागी हुआ ज़रा
भय्या भाभी का प्यार मिला!!!
सत्ताईस बरस की दूरी में हर
धूप छांव भी साथ सही
खठ्ठे मीठे लम्हे बीते ,कुछ
हमने सुनी कुछ तुमने कही
मेरी हर इक मुश्किल में तुम
साया बन कर मेरे साथ खड़ी
तुम अडिग रहीं मेरे साथ सदा
जीवन की चलती रही घड़ी
आशीष मेरा है, ये तुमको
कि रहो सुहागिन जीवन भर
जब भी मुश्किल में जीवन हो
बस हंसती रहना जीवन भर

एक और साल फिर से वही काम कर गया
कुछ को बनाके खा़स,किसीको आम कर गया
हम तो वहीं खड़े हैं जहां पे पिछले साल थे
नाकामियों को फ़िर हमारे नाम कर गया
रिश्तों के रंग,प्याज़ के छिलकों सा उतर गए
अच्छे बुरे की ठीक से पहचान कर गया
बाक़ी रहा ना हौसला अब इम्तिहान का
पर्चा बहुत कठिन था, परेशान कर गया
वक़्त अपना भी इक रोज़ बदल जायेगा
फिर नया दौरे इंकलाब नज़र आयेगा
ये हक़ीक़त है मान लो तुम भी
फिर कोई जुगनु आफताब बनके आयेगा
ज़िक्र होगा जहां जफ़ाओं का
तेरा ही नाम अब मेरी ज़ुबां पे आयेगा
रात काली घिरी हो बादल से
मेरा मेहताब़ वहीं फिर से नज़र आयेगा
कश्ती झेल रही वक्त के थपेडों को
है यकीं मांझी मेरा पार लेके जायेगा

*उतना ऊंचे मत उड़िये*
*कि धरा पे आना मुश्किल हो*
*राज पाट सब लुट जाये*
*सम्मान बचाना मुश्किल हो*

*कुछ मुददों पर बात करो*
*कुछ समस्यायें सुलझाओ ना*
*कहीं ऐसा ना हो कि अपना*
*जनाधार बचाना मुश्किल हो*

*अब जनता को ना भरमाओ*
*ये खूब समझती है तुमको*
*ये मांगेगी अपना हिसाब*
*तब लाज बचाना मुश्किल हो*
इतना सरल बनो कि जीवन
सुंदर सरल तुम्हारा हो
इतने अडिग बनो कि संभव
हर इक लक्ष्य तुम्हारा हो
रस्ता भले कठिन हो लेकिन
मंजिल तक ले जायेगा
द्रढ निश्चय कर चलो इसी पर
विजयी ध्येय तुम्हारा हो
रात अंधेरी हो तो क्या ग़म
निश्चित सुबह तुम्हारी है
सूरज की लाली जब फूटे
उसमें उदय तुम्हारा हो
राग द्वेष और लोभ कपट से
ऊपर उठ कर सोचो
स्नेह प्रेम से भरा हुआ ही
निश्छल हदय तुम्हारा हो
तुम ईश्वर के सेवक हो बस
यही मान कर काम करो
मानवता ही परम धर्म ये
जीवन लक्ष्य तुम्हारा हो

ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांयः 8 बजे 14/08/2019
आओ मिलकर हम फिर से आजा़दी नई मनायें
श्रीनगर के लाल चौक पर जनगणमन को गायें
कश्मीर हमें प्राणों से प्यारा,फिर से इसे सजायें
कश्मीरी भारत वासी हैं,मुख्यधारा में आयें
कोई वंचित रहे नहीं और,ज्ञान की गंगा बहे वहाँ
ये संकल्प हमारा है कि,केसर फिर से खिले वहाँ
किस किस से बयां करें हम
हालात ज़िंदगी के
सुनते हैं सभी लेकिन
कतरा के निकल जाते

न मांझी,न हमसफ़र,न हक में हवाएं,
है कश्ती भी जर्जर,ये कैसा सफर है..
अलग ही मजा है फकीरी का अपना,
न पाने की चिंता,न खोने का डर है..

तक़दीर ने किनारों से ना करी दोस्ती
भंवर में नाचते रहे,इतना नसीब़ था
वो पास आके बैठा,पर खा़मोश ही रहा
क्यूँ इतना दूर हो गया,जितना करीब़ था
हमने नदी से कश्ती,अब खु़द ही निकाल ली
सूखी नदी में नाव चलाना,अजीब़ था
दरियादिली के उसके तो,किस्से सुने बहुत
पर ये ख़बर ना थी,वो 'मुफ़लिस'से ग़रीब था

     ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रातः 5 बजे 6/07/2019
शिकस्त दर शिकस्त हम खाते रहे
फिर भी हँसते रहे, गुनगुनाते रहे
पड़ने दी ना कभी,माथे पे सिलवटें
बोझ दिल पे ग़मों का उठाते रहे
जीना ग़र है हमें,क्यूँ ना हँसकर जियें
अश्क आँखो में रखें,और लबों को सियें
अहले दुनिया से कोई भी शिकवा नहीं
'मुफ़लिसी'में हम अमीरी दिखाते रहे
मेरी नैया अब तेरे हवाले*
 *तेरी मर्ज़ी संभाले,ना संभाले*
*मैं तो मीरा नहीं,ना मैं राधा कोई
*मेरी बंसी अब तू ही बजा ले*
          *तेरी मर्ज़ी.............*
*हर प्रहर नाम तेरा ही मैंने जपा*
*धूप कितनी सही,जाने कितना तपा*
*चाहे रखे तू चाहे उठा ले*
          *तेरी मर्ज़ी.............*
*जाने लिखा है क्या,ये तो तू ही पढे़*
*मैं तो मूरख हूँ,किस्मत को तू ही गढे़*
*हूँ अमानत तेरी,तू संभाले*
         *तेरी मर्ज़ी.............*
*आरज़ू है मेरी ,तेरे दीदार की*
*बस तमन्ना तेरे लाड़ औ प्यार की*
*हूँ भंवर में फंसा, तू बचा ले*
         *तेरी मर्ज़ी.............*
      ऋषि राज शंकर
सांय 6 बजे 17/06/2019
धनवंतरि पर थूके अफ़जल
 तुमको समय रहा ललकार
 उठो राम गांडीव संभालो
 तुमको नर्सें रहीं पुकार

 दुश्मन मुंह पर थूक रहा है
 जिह्हा खींच लो तुम इनकी
 ये पौरुष को ललकारें हैं
 नस्ल मिटा दो तुम इनकी

 घर घर से अफ़जल निकले हैं
 मानवता को कुचल रहे
 मौत बांटने निकले हैं ये
 जिंदा अफ़जल मचल रहे

 इन दानव का अंत करो
 तब आग बुझेगी सीने में
 जब तक ये अफ़जल जीवित हैं
 मज़ा नहीं है जीने में

 भारत मां का दूध पुकारे
 अब इनका संहार करो
 लाज रखो भारत माता की
 फिर जाकर विश्राम करो
    ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 7बजे 04/04/2020
शिकस्तों के कब्रिस्तान पर
ताज,उम्मीदों का टूटा पड़ा है
ना‌ जाने कैसा मुश्किल
वक़्त सर पर आ पड़ा है
जिन्हें समझा था अपना
हमनेअपनी ज़िन्दगी में
वो हर शख़्स यूं दामन
छुड़ा के चुप खड़ा है
अंधेरी सी गली में
भागतीअब जिंदगी है,
कि हर इक मोड़ पर मेरा
सा इक साया खड़ा है
तकाज़ा वक्त का है
सब्र करके देखता हूं
ना जाने रास्ता बाक़ी
अभी कितना पड़ा है
'मुफलिसी' हाथ धोकर
इस कद्र पीछे पड़ी है
मैं अपनी ज़िद में हूं
डट कर उसूलों पर अड़ा हूं
  ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 11बजे 27/02/2020
गरज कर सारी रात वो बरस गए मुझ पर
समझ ना पाये हम,अंदाज़ कातिलाना था
सह गए हम भी इल्जा़मात बड़ी ख़ामोशी से
रह गये चुप मगर बहुत कुछ बताना था

हर पल आस का दीप जलाये
मन में इक विश्वास जगाये
मैं तुझे ढूंढता रहता हूं
कुछ बहका बहका रहता हूं
ना जाने ज़िंदगी में कितने इम्तिहान बाक़ी हैं
अभी छूने को कितने आसमान बाक़ी हैं
थक गया हूं मैं इस बेइंताही दौड़ में अब
ना‌ जाने चढ़ने को कितने पायदान बाक़ी हैं
   ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 8बजे 5/12/2019

ऐ खुदा उस मील के पत्थर को दिखा दे
तुझसे हूं कितना दूर जो अब इसका पता दे
मिलने की तलब तुझसे अब बढ़ती ही जा रही
मुझे ख्वाहिशों से दूर कर ,अपनी पनाह दे
परवरदिगार 'मुफलिस' पे रहमत की मेहर कर
इस पार से उस पार कर जीवन संवार दे
     ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     प्रातः 11बजे 5/12/2019
तुमसे दूरी का सोचूं,तो
प्राण उखड़ने लगता है
दिल में पीड़ा का हल्का
सा दर्द उमड़ने लगता है
इक्कीस बरस गुज़ारे तुमने,
आंखों का तारा बनके
शीघ्र घड़ी वो आयेगी जब
जाओगी डोली सजके
सोच सोच कर विदा घड़ी
मन उचटा उचटा लगता है
    दिल में पीड़ा का हल्का....
कभी बेटी बनके लाड़ किया
कभी मां बन डांट लगाई है
हर लम्हा जीवंत जिया
मेरी दुनिया सुखी बनाई है
जब भी तन्हा मैं बैठूं
सब सपना सपना लगता है
    दिल में पीड़ा का हल्का....
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
     सांयः 9बजे 3/12/2019