गज़ल
जिगर की टीस को तुम कब तलक दिल में दबाओगे
उमड़ता अश्क का सावन है ,कैसे तुम छिपाओगे !!
अभी तो इश्क़ का आगाज़ है और दूर मन्ज़िल है
अभी से तुम परेशाँ हो अभी से लड्खड़ाओगे !!
ज़ुबाँ खामोश है पर लब तुम्हारे थरथराते हैं
वफ़ा की दास्तां दुनिया को कैसे तुम सुनाओगे!!
हमारे दिल में रह्ते हो, हमीं से कर रहे पर्दा
तम्मन्ना दीद की जिस रोज़ तुम चिलमन हटाओगे!!
मेरी साँसों से तेरा दूर जाना अब न मुमकिन है
तुम्हारा अक्स हूँ मैं किस तरह मुझको भुलाओगे!!
लगेगा यादों का मेला तुम्हारे दिल के आँगन में
मेरी गज़लों को अपने ही लबों पर गुनगुनाओगे!!
मेरी खामोशी को मेरी, न कमज़ोरी समझना तुम
मैं दरिया इश्क़ का हूँ तुम उतर कर डूब जाओगे!!
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
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ReplyDeletewaise main i hv no authority 2 comment upon u bt i shud say u r 1 of d finest 'kalaakar' amng mi favourites . keep on puffing up d blog 4 ur fan !!!!!!!!
urs bonny