सफ़र
कितनी दूर अभी है चलना, इस जीवन के गाँव में
गम की रेत पर चलते- चलते छाले पड़ गये पाँव में!!
दो साँसों में दूरी कितनी, कितना और तड़पना है
ज़ीवन की बगिया ये कैसी,मिलना और बिछ्ड़ना है
पार करूँ कैसे भवसागर, पानी भर गया नाव में!!
कितनी दूर अभी है चलना,-------------
कालचक्र ने कैसी निर्मम ऐसी रीति बनाई है
जिन हाथों में खेला बचपन अग्नि उन्ही से पाई है
रोयें आखें सिसके धड़कन, अजब न्याय के घाव में
कितनी दूर अभी है चलना,-------------
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
Sir, you are amazing poet. apki intni achi poem padhkar mere ko shayari yaad aati hai..............................................
ReplyDelete"Na chahat hai sitaron ki
na chahat hai nasaron ki
ap jaisa guru mila
kya jarurat hai hazaron ki"