ऐ खुदा कुदरत में ये कैसे करिश्में हो गये
आदमी चूहों के जींस एक जैसे हो गये !!
दुर्दशा मानव की देख ब्रहमा भी अब रोने लगे
वो सुबक कर क्रोध से विष्नु से ये कहने लगे
कि अब तलक इक भी चूहा बन ना पाया आदमी
फिर आदमी चूहों के जैसे डर के क्यों रहने लगे !!
क्या बतायें साइंटिस्ट भी काम कैसा कर रहे
आदमी चूहों के दम पर शोध पूरा कर रहे
आदमी चूहों के जैसा काम भी करने लगा
दिन दहाड़े अंगुलियों से जेब कुतरने लगा !!
धीरे-धीरे ही कुतर कर देश पूरा खा गया
पहन के खद्दर की टोपी किस कद्र इतरा गया
आदमी -चूहों गुण और आदतें भी एक है
गंध , डी एन ए , प्रोटीन हर तरह से एक है!!
चूहे फिर भी कुछ दशा में आदमी से भिन्न है
आदमी चूहों से ज़्यादा दयनीय और निम्न है
चूहे कभी ज्यादाद को, निज भाई से लड़ते नहीं
शर्म से जब सर झुके, ये काम वो करते नहीं !!
सिद्दि विनायक की सवारी आदमी हो जायेगा
चूहा बैठेगा किनारे, और मोदक खायेगा !!
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
(13/12/2004)
Respected sir,
ReplyDeleteIt is a marvelous poem and you should give your poems for publishing.
Shivani Tripathi
10 B.
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ReplyDeleteRespected sir,
ReplyDeleteIt is beautiful poem.
"Patte gir sakte hai,pedh nahi
suraj doob sakta hai, asmaan nahi
dharati sukh sakhti hai,dariya nahi
duniya badal sakti hai,guru ki mahanta nahi "
Anya Srivastava
10B