फ़ुर्सत किसे?
अपनी- अपनी फ़िक्रों में उलझा है आदमी
यहाँ कौन है जो दर्द का एह्सास कर सके
वेदना के घाव में गहराई कितनी है
फुर्सत किसे जो बैठ के अफसोस कर सके
सच्चाई से मुँह मोड़ के बैठेंगे कब तलक
चलो जिंदगी की हम सही पह्चान कर सकें
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
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