दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Thursday, February 18, 2010

पहचान ?

वेदना संवेदना के चक्रव्यूह में फँसा
एक अनकहे प्रेम की पहचान ढूँढ्ता हूँ मैं
हैवानियत दरिंदगी के शोर में चारों तरफ़
एक अनसुनी सी प्रेम की आवाज़ ढूँढ्ता हूँ मैं ॥
खुद से लड्ता हूँ मगर,पर हारता हर रोज़ हूँ
जीतने का फिर कोई सामान ढूँढ्ता हूँ मैं
कौन जाने किस तरफ़ ये ज़िंदगी ले जायेगी
रास्तों की ज़ेहन में पहचान ढूँढ्ता हूँ मैं ॥
कब ज़ुबां खामोश हो, कब धड़कने रुक जांयेगी
आने वाले वक्त से अनजान घूमता हूँ मैं
कल चला था साथ कोई भीगी-भीगी रेत पे
जख्मों के छोड़े हुए निशान ढूँढ्ता हूँ मैं ॥
सब मिले वो ना मिला जो मुझको थोड़ा पढ़ सके
इक अदद इक प्यारा सा इंसान ढूँढ्ता हूँ मैं॥

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”

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