दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Thursday, February 18, 2010

हिसाब ?

हिसाब ज़ुल्म का जिस रोज़ लेने वक्त आयेगा
पड़ेगी वक्त की लाठी तो जालिम कँपकँपायेगा
लकीरें हाथ की हरदम कभी न एक सी रहतीं
सितारा आज गर्दिश में है, पर कल चमचमायेगा
नज़र आता है इक जुग़नू अँधेरी रात में मुझको
दिलासा दे रहा दीपक मेरे घर टिमटिमायेगा
चलेंगी आँधियाँ जिस रोज़ भी ज़ुल्मे ख़िलाफत की
परिंदे हाथ न आयेगें सैयाद छ्टपटायेगा
परवरदिग़ार मेरे गुनाहों को बख़्श देना
ये सर कहीं पे और झुकाया न जायेगा
बेइंताही प्यास है तेरी इनायत की
इनायत जब कभी होगी ये ‘मुफलिस’ मुस्करायेगा

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
12/10/2008

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