दिल की अभिव्यक्ति

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दिल की अभिव्यक्ति

Monday, February 22, 2010

कु्छ भी नहीं

निगाहों ने की बातें बहुत, मुहँ से कहा कुछ भी नहीं
मेरी मोहब्बत ही मेरी ख़ता है,तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
कभी हममें तुममें थी दोस्ती, कु्छ प्यार के लम्हात थे
फिर फ़ासला कुछ यूँ बढ़ा, बाकी रहा कुछ भी नहीं॥
बेइंताही भीड़ में, भागा किये हम किस कद्र
उम्रे सफ़र में आज़तक, हासिल हुआ कुछ भी नहीं
यहाँ मतलबों की भीड़ है, हर शख़्स परेशाँ है अब
ये मुश्किलों क दौर है, आसान सा कुछ भी नहीं ॥
बस एक मुठ्ठी ख़ाक ही, पूरी ज़िंदगी का साथ है
बस कब्र है मंज़िल मेरी, इसके सिवा कुछ भी नहीं


ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
22/01/2010

1 comment:

  1. sir,
    bina ap ke hum kuch bhi nahi.
    it's really a heart touching poem.
    from anya class11b.

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