गर्भ पर भी खोज काफी कर चुका
भूगर्भ सारा खोल कर तू पढ़ चुका
आकाश में स्वछ्न्द विचरण कर चुका
पर म्रत्यु पे अपनी विजय न कर सका
जान ना पाया रहस्य तू म्रत्यु के आधार का
म्रत्यु तो निश्चित अटल है नियम है संसार का
खोज डाला इस जहाँ का कोना कोना
खोज न पाया मगर तू मन का कोना
पढ़ तो ली पुस्तकें मगर हासिल न पाया
आत्मा की अभिव्यकति को ना जान पाया
जान लीं बातें बहुत सी ञान और विञ्यान की
है ज़रुरत आज निज़ व्यकितत्व के पहचान की॥
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
20/08/2008
its amazing !!!!! sir,no one can compete u
ReplyDeleteanya