देह मेरी निष्प्राण पड़ी थी
मेरे घर के आंगन में
एक अजब सी खामोशी थी
मेरे घर के आंगन में
कुछ परिजन खामोश खड़े थे
कुछ व्हाट्सअप में डूब गए थे
कुछ अपने थे बिलख रहे जो
मेरे घर के आंगन में
तिनका तिनका जो जोड़ा था
अपने खून पसीने से
सबकुछ अपना समझ लिया था
मैंने अपने जीवन में
वो सब कुछ अब छूट गया था
मेरे घर के आंगन में
गिले शिकवे भी तब तक होते
जब तक देह में सांस है
ना कोई उम्मीदें अब हैं
ना कोई भी आस है
पंछी पिंजरे से निकल चुका अब
मेरे घर के आंगन में
जल्दी में ही सब लगते हैं
शव घर से ले जाने को
रामनाम सत्य कहके चल दिए
अंतिम क्रिया कराने को
जल्दी जल्दी हुई मुखाग्नि
सब अपने घर को भागे
केवल परिजन लौट रहे थे
मेरे घर के आंगन में
कोई वसीयत खोज रहा था
कोई पासबुक ढूंढ रहे
किसको मैंने क्या बांटा है
सब अपना हित खोज रहे
असली चेहरे सबके दिख रहे
जिनको अपना समझा था
देख रही थी मेरी आत्मा
मेरे घर के आंगन में
ये सब मैंने क्यूं लिखा है
समझ सको तो, समझ सको
केवल प्रभु अंतिम साथी है
बस उससे ही प्रेम करो
कुछ भी नहीं हमारा अपना
मेरे घर के आंगन में
ऋषिराज अभिव्यक्ति ❤️
25/10/2022
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