रेत जैसे मुट्ठियों से फिसलता रहा
वक्त अपना सफर खत्म करता रहा
हम उम्मीदों के साए में बैठे रहे
सपनों का कारवां भी बिखरता रहा
शिकवा भी हम करें,तो किससे करें
मेरा मुंसिफ ही मेरा कत्ल करता रहा
कोई पढ़ेगा ज़रुर,बस इसी आस में
रातभर 'अभिव्यक्ति' यूं ही लिखता रहा
ऋषिराज "अभिव्यक्ति" ❤️❣️
13/03/2022
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