खुद में रह कर खुद से ही अनजान हूं
अब क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं
ईमानदार हूं तभी तक आज भी
जब मिले मौका तो मैं बेईमान हूं
क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं
रफ्ता रफ्ता खर्च होती ज़िंदगी
हूं अकेला भीड़ में हैरान हूं
दो वक्त की रोटी की जद्दोजहद में
सुबह से भटका हुआ परेशान हूं
क्या कहूं, मैं आज का इंसान हूं
कट गए हों पर,वो पंछी बन गया हूं
अब आसमां की दूरी से अनजान हूं
है नहीं कीमत यहां "अभिव्यक्ति"की
बहरों की दुनिया का मैं इंसान हूं
ऋषिराज अभिव्यक्ति
❤️
23/03/2022
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