बेटी जब भी तेरा बचपन
मुझको याद कभी आता है
तेरा घुटनों ठुमक के चलना
तन मन महका जाता है
मेरी गोदी में आकर जब
किलकारी तू भरती थी.
मेले पापा प्याले पापा
तुतलाकर तू कहती थी
तेरी यादें अक्सर मेरी.
आंख भिगो जाता है
बेटी तेरा..................
बात बात पे तू रुठे और
मुझे मनाना पड़ता था
कभी कहानी,लोरी गा के
तुझे सुलाना पड़ता था
हर लम्हा तेरे भोलेपन की
याद दिला जाता है
बेटी तेरा..................
जिस दिन तूने जन्म लिया था
घर आंगन मेरा महका था
तेरी चुलबुली शैतानी से
बिना नशे के बहका था
छुपा छुपी का खेल हमारा
याद बहुत आता है
तुझको विदा करुंगा कैसे
दूजे के घर जाने को
प्रियतम के घर जाकर
प्यारा इक संसार बसाने को
ये ख्याल ही मुझसे मेरे.
प्राण लिये जाता है
बेटी तेरा..................
ऋषि राज शंकर 'अभिव्यक्ति '
२९ सितंबर २०१४, रातः१० बजे
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