उम्र बढ़ती रही साथ चलता रहा
धूप-छांव में सफर यूं ही कटता रहा
30 बरसों की दूरी हमने संग जिया
तुम हो मेरी प्रिय, मैं हूं तेरा पिया
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही
चाहे मधुबन में पतझार लाना पड़े
या मरुस्थल में शबनम उगाना पड़े
मैं भगीरथ सा आगे चलूंगा मगर
तुम पतित पावनी सी बहो तो सही
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए
पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो
मैं भी दशरथ सा वरदान दूंगा तुम्हें
युद्ध में कैकई सी रहो तो सही
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए
हाथ देना ना संन्यास के हाथ में
कुछ समय तो रहो,उम्र के साथ में
एक भी लांछन सिद्ध होगा नहीं
अग्नि में जानकी सी दहो तो सही
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए
अंसार कंबरी
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