रुह को सुकून मिल गया
अजमेर जाकर आके
ख्वाजा के दर पे जाके
और झोलियां फैला के
आंगन में उसके हर दम
रहमत बरस रही है
हम भी वहां नहा ले
चादर को इक चढ़ा के
बैचेन दिल को मेरे
उस वक्त करार आया
चौखट पे उनकी आके
सजदे में सिर झुका के
हर शय की मन्नतों को
पूरा वो कर रहे हैं
गरीब नवाज़ हैं वो
झोली को भर रहे है
मुफलिस भी खुश हुआ है
दीदार उनके पा के
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
३१अगस्त २०१४, दोपहरः२ बजे
अजमेर जाकर आके
ख्वाजा के दर पे जाके
और झोलियां फैला के
आंगन में उसके हर दम
रहमत बरस रही है
हम भी वहां नहा ले
चादर को इक चढ़ा के
बैचेन दिल को मेरे
उस वक्त करार आया
चौखट पे उनकी आके
सजदे में सिर झुका के
हर शय की मन्नतों को
पूरा वो कर रहे हैं
गरीब नवाज़ हैं वो
झोली को भर रहे है
मुफलिस भी खुश हुआ है
दीदार उनके पा के
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
३१अगस्त २०१४, दोपहरः२ बजे
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