चादर कोई उढा़ दो
मेरी कब्र पे आकर
ठंडक बहुत सता
रही है आजकल हमें
जबसे गए हैं आप यहां
दो कतरे गिरा कर
उसकी नमी भी आज
तक गला रही हमें
जबतक तुम्हारा साथ
था ,न कद्र की कभी
यादें तन्हाईयों में अब
रुला रही हमें
मेरी कब्र पे आकर
ठंडक बहुत सता
रही है आजकल हमें
जबसे गए हैं आप यहां
दो कतरे गिरा कर
उसकी नमी भी आज
तक गला रही हमें
जबतक तुम्हारा साथ
था ,न कद्र की कभी
यादें तन्हाईयों में अब
रुला रही हमें
No comments:
Post a Comment