बहुत मायूस हैं चलो
यूँ ही दिल को बहलायें,
कहीं से एक खिलौना
फिर ढूंढ कर लाऐं
ज़रा सा खेलेंगे फिर
वो भी टूट जायेगा
मेरा क्या अपना है
जो है वो छूट जायेगा
बिखरके टूटना,खिलौने
का ये मुकद्दर है
जो नसीब़ उसका है
वो उसके साथ जायेगा
हम भी गुमनाम अंधेरों
में छिप के बैठे हैं
दिये की रोशनी खुद
ही बुझा के बैठे हैं
बस इक उम्मीद इस
दिल में जगा के बैठे हैं
कभी तो कोई फरिश्ता
नज़र में आयेगा
मेरा क्या अपना......
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 6:30 बजे 21/09/2018
यूँ ही दिल को बहलायें,
कहीं से एक खिलौना
फिर ढूंढ कर लाऐं
ज़रा सा खेलेंगे फिर
वो भी टूट जायेगा
मेरा क्या अपना है
जो है वो छूट जायेगा
बिखरके टूटना,खिलौने
का ये मुकद्दर है
जो नसीब़ उसका है
वो उसके साथ जायेगा
हम भी गुमनाम अंधेरों
में छिप के बैठे हैं
दिये की रोशनी खुद
ही बुझा के बैठे हैं
बस इक उम्मीद इस
दिल में जगा के बैठे हैं
कभी तो कोई फरिश्ता
नज़र में आयेगा
मेरा क्या अपना......
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 6:30 बजे 21/09/2018
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