कहानी दिल की मैं
लफ्जो़ं में ढाल लेता हूँ
बस इस तरह से मैं
खुद को संभाल लेता हूँ
सब अपनी अपनी ही
दुनिया में खोये बैठे हैं
मैं भी तन्हाइयों में
दिन गुजा़र लेता हूँ
मिटा के खुद को तेरे
घर में रोशनी की है
इसी सुकून में रातें
गुजा़र लेता हूँ
कभी तो रोशनी मेरे
भी दर पे आयेगी
बस यही सोच कर
चौखट बुहार लेता हूँ
हमारी सांसे भी दम
तोड़ने पे कायम है
किसी तरह से कुछ
मोहलत निकाल लेता हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 5:30 बजे 18/12/2018
लफ्जो़ं में ढाल लेता हूँ
बस इस तरह से मैं
खुद को संभाल लेता हूँ
सब अपनी अपनी ही
दुनिया में खोये बैठे हैं
मैं भी तन्हाइयों में
दिन गुजा़र लेता हूँ
मिटा के खुद को तेरे
घर में रोशनी की है
इसी सुकून में रातें
गुजा़र लेता हूँ
कभी तो रोशनी मेरे
भी दर पे आयेगी
बस यही सोच कर
चौखट बुहार लेता हूँ
हमारी सांसे भी दम
तोड़ने पे कायम है
किसी तरह से कुछ
मोहलत निकाल लेता हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 5:30 बजे 18/12/2018
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