मैने मुठ्ठियों से रेत को
फिसलते हुए देखा है
मंजिलों को हाथ से
छिटकते हुए देखा है
वो झूठ कहता है कि
पत्थर का जिग़र रखता हूँ
तन्हा रातों में उसको भी
सिसकते हुए देखा है
फिसलते हुए देखा है
मंजिलों को हाथ से
छिटकते हुए देखा है
वो झूठ कहता है कि
पत्थर का जिग़र रखता हूँ
तन्हा रातों में उसको भी
सिसकते हुए देखा है
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