अपनों के बीच खुद की
मैं पहचान ढूंढता हूँ
दुनिया में भीड़ है बहुत
इंसानियत नहीं
हैवानियत के मेले में
इंसान ढूंढता हूँ
यूं तो बहुत ही शोर है
जीवन के शहर में
एक अनकही सी अनसुनी
आवाज़ ढूंढता हूँ
चर्चे बहुत ,मेरे हुऐ
ख़बरों के दौर में
उस पर सितम है खुद
की मैं पहचान ढूंढता हूँ
ना जाने कब कटेगी अब
साँसों की ये पतंग
बेईमान ज़िंदगी में अब
ईमान ढूंढता हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 6:30 बजे 20/09/2018
मैं पहचान ढूंढता हूँ
दुनिया में भीड़ है बहुत
इंसानियत नहीं
हैवानियत के मेले में
इंसान ढूंढता हूँ
यूं तो बहुत ही शोर है
जीवन के शहर में
एक अनकही सी अनसुनी
आवाज़ ढूंढता हूँ
चर्चे बहुत ,मेरे हुऐ
ख़बरों के दौर में
उस पर सितम है खुद
की मैं पहचान ढूंढता हूँ
ना जाने कब कटेगी अब
साँसों की ये पतंग
बेईमान ज़िंदगी में अब
ईमान ढूंढता हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 6:30 बजे 20/09/2018
No comments:
Post a Comment