बहुत देर हो गई,
बरसते बरसते
इन आँखो से आँसू
छलकते छलकते
मगर अपनी जिद में
नहीं तुम भी आये
निकलता रहा दम,
तड़पते तड़पते
निगाहों से कई बार
इतनी पिलायी
कदम लड़खड़ाये,
बहकते बहकते
हमें आरज़ू थी कि
पहलू में तुम हो
जवाँ रात हो फिर
महकते महकते
थी किस्मत हमारी भी
मुफ़लिस के जैसी
बिता डाला जीवन
घिसटते घिसटते
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 5:30 बजे 25/09/2018
बरसते बरसते
इन आँखो से आँसू
छलकते छलकते
मगर अपनी जिद में
नहीं तुम भी आये
निकलता रहा दम,
तड़पते तड़पते
निगाहों से कई बार
इतनी पिलायी
कदम लड़खड़ाये,
बहकते बहकते
हमें आरज़ू थी कि
पहलू में तुम हो
जवाँ रात हो फिर
महकते महकते
थी किस्मत हमारी भी
मुफ़लिस के जैसी
बिता डाला जीवन
घिसटते घिसटते
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 5:30 बजे 25/09/2018
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