हम भी उड़ जायेंगे इक
रोज परिंदों की तरह
खाली पिंजरे में फिर तुम
बस हमारा अक्स ढूंढोगे
बुलाना लाख चाहो तुम,
मगर फिर हम ना आयेंगे
फिर हम उस दुनियां में घूमेंगे
तुम इस दुनियां में ढूंढोगे
मेरी आवाज़ तन्हा रातों में
तुमको रुलायेगी
बडी़ शिद्दत के साथ तुम
मेरी आवाज़ ढूंढोगे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 9:30 बजे 23/11/2018
रोज परिंदों की तरह
खाली पिंजरे में फिर तुम
बस हमारा अक्स ढूंढोगे
बुलाना लाख चाहो तुम,
मगर फिर हम ना आयेंगे
फिर हम उस दुनियां में घूमेंगे
तुम इस दुनियां में ढूंढोगे
मेरी आवाज़ तन्हा रातों में
तुमको रुलायेगी
बडी़ शिद्दत के साथ तुम
मेरी आवाज़ ढूंढोगे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं: 9:30 बजे 23/11/2018
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