ज़ख्मों को फिर से अपने
तरोताजा़ कर लें हम
इक मर्तबा फ़िर से नई
पहचान कर लें हम
मंज़र तो रुख़सती का
तुम्हें याद तो होगा
आंसू के क़ाफिले को
फिर सलाम कर लें हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
10/08/2016 रात्रि 8 बजे
तरोताजा़ कर लें हम
इक मर्तबा फ़िर से नई
पहचान कर लें हम
मंज़र तो रुख़सती का
तुम्हें याद तो होगा
आंसू के क़ाफिले को
फिर सलाम कर लें हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
10/08/2016 रात्रि 8 बजे
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