जीवन ऐसे चौराहे पर
आकर खड़ा हुआ
हर रस्ते पर घना अंधेरा
शून्य से भरा हुआ
चारों ओर शून्य दिखता
कोई आशा रही न बाकी़
लुटा पिटा सा निपट अकेला
खुद से ठगा हुआ
है यकींन फ़िर भी मुझको
तुम मुझे संभालोगे
आशाओं का दीप जला
कोई राह निकालोगे
आकर खड़ा हुआ
हर रस्ते पर घना अंधेरा
शून्य से भरा हुआ
चारों ओर शून्य दिखता
कोई आशा रही न बाकी़
लुटा पिटा सा निपट अकेला
खुद से ठगा हुआ
है यकींन फ़िर भी मुझको
तुम मुझे संभालोगे
आशाओं का दीप जला
कोई राह निकालोगे
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