दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Friday, September 9, 2016

ज़िंदगी अपना सफ़र
तय कर रही थी
मैं तमाशा देख कर
मरता रहा जीता रहा
शिव हलाहल को
पिये एक बार ही
मैं रोज़ ही कितना
ज़हर पीता रहा
जख्म भले ही मुझको
अपनों ने दिये
उनके लिये फिर भी
दुआ पढ़ता रहा
दोस्त ही का़तिल बने थे
जब़ मेरी आवाज़ के
चुपचाप मैं तनहाईयों में
फिर गजल लिखता रहा
♒♒♒♒♒♒♒
इन आंसुओं को मत
रोको, बह जाने दो
ज़ुबां जो कह न सकी
अब इन्हें ,कह जाने दो
ये तो अच्छा हुआ
सैलाब निकल जायेगा
मेरे ख्वाबों की इमारत
को भी ढह जाने दो
ज़रा सा दिल ही तो
टूटा है कोई बात नहीं
बहुत मज़बूत हूँ ये
चोट भी सह जाने दो
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
  31/08/2016 रात्रि 10बजे 

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