तेरे दर से जो रोशन हुआ
मैं तो वो चिराग़ हूँ
न हवा में हौसला है
कि बुझा दे मेरी लौ को
जो फ़लक में है चमकता
मैं वो आफ़ताब हूँ
जो मैं हूँ ,वो तेरी हर दम
रहमत का नूर हूँ
जहाँ गुल महक़ रहे हों
ऐसा वो बाग़ हूँ
चाहता हूँ कबसे रहना
तेरी बारगाह में आके
यही तिश्नगी बुझा दे
जन्मों की प्यास हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
प्रात:11:30 बजे 22/08/2018
मैं तो वो चिराग़ हूँ
न हवा में हौसला है
कि बुझा दे मेरी लौ को
जो फ़लक में है चमकता
मैं वो आफ़ताब हूँ
जो मैं हूँ ,वो तेरी हर दम
रहमत का नूर हूँ
जहाँ गुल महक़ रहे हों
ऐसा वो बाग़ हूँ
चाहता हूँ कबसे रहना
तेरी बारगाह में आके
यही तिश्नगी बुझा दे
जन्मों की प्यास हूँ
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
प्रात:11:30 बजे 22/08/2018
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