दर्द में डूबे लफ्ज़ मिलें तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ग़म में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
तन्हा रातों को अक्सर मैं
खु़द को ढूंढा करता हूँ
प्रेम में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
अबकी सावन में आँखे भी
दरिया बनकर उमड़ पड़ी
कुछ देरऔर बरस लें ये तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
हर इक शख्स ज़माने में
अपनी फिक्रों में उलझा है
मेरी उलझन सुलझे तब ये
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
पैगाम मोहब्बत का देता हूँ
अमन चैन के साथ रहो
हिंदुस्तान सुरक्षित हो तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं:9:30 बजे 30/08/2018
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ग़म में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
तन्हा रातों को अक्सर मैं
खु़द को ढूंढा करता हूँ
प्रेम में डूबी रुह मिले तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
अबकी सावन में आँखे भी
दरिया बनकर उमड़ पड़ी
कुछ देरऔर बरस लें ये तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
हर इक शख्स ज़माने में
अपनी फिक्रों में उलझा है
मेरी उलझन सुलझे तब ये
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
पैगाम मोहब्बत का देता हूँ
अमन चैन के साथ रहो
हिंदुस्तान सुरक्षित हो तब
ग़ज़ल मुकम्मल हो जाये
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सायं:9:30 बजे 30/08/2018
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