शिकस्त दरशिकस्त हम खाते रहे
फिर भी हर हाल में मुस्कुराते रहे
मेरी आवाज़ से उनको नफ़रत सी थी
उनपे गज़ले मग़र गुनगुनाते रहे
वो ना आये मगर मन्नतें कितनी की
फिर भी शिद्दत से उनको बुलाते रहे
हम तरसते रहे उनके दीदार को
वो दुपट्टे में मुखडा़ छिपाते रहे
ये मालूम है छुप छुप वो देखा किये
फिर भी मिलने से क्यूं कतराते रहे
जिंदगी इक तवायफ़ का कोठा हुई
नाचते हम रहे, वो नचाते रहे
वक्ते रूख़सत,अलविदा के समय
वो निगाहों में आँसू छिपाते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सांय:7:30 बजे 26/05/2018
फिर भी हर हाल में मुस्कुराते रहे
मेरी आवाज़ से उनको नफ़रत सी थी
उनपे गज़ले मग़र गुनगुनाते रहे
वो ना आये मगर मन्नतें कितनी की
फिर भी शिद्दत से उनको बुलाते रहे
हम तरसते रहे उनके दीदार को
वो दुपट्टे में मुखडा़ छिपाते रहे
ये मालूम है छुप छुप वो देखा किये
फिर भी मिलने से क्यूं कतराते रहे
जिंदगी इक तवायफ़ का कोठा हुई
नाचते हम रहे, वो नचाते रहे
वक्ते रूख़सत,अलविदा के समय
वो निगाहों में आँसू छिपाते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सांय:7:30 बजे 26/05/2018
No comments:
Post a Comment