यकींन की दीवार,दरकती ही जा रही
जिंदगी हाथों से फिसलती ही जा रही
मौला, मेरे अब रास्ता,तू ही बता कोई
क्यों जिंदगी ये आज भटकती सी जा रही
बैचैन ह्रर इक शख्स है,परेशान रुह है
ख्वाहिशें सीने में पिघलती सी जा रही
मतलबी ह्रर शख्स है,इस कायनात में
या खुदा ये दुनिया सिमटती ही जा रही
फासले कुछ इस तरह से बढ रहें है अब,
परछाईं अपने आप से अब दूर जा रही
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४
जिंदगी हाथों से फिसलती ही जा रही
मौला, मेरे अब रास्ता,तू ही बता कोई
क्यों जिंदगी ये आज भटकती सी जा रही
बैचैन ह्रर इक शख्स है,परेशान रुह है
ख्वाहिशें सीने में पिघलती सी जा रही
मतलबी ह्रर शख्स है,इस कायनात में
या खुदा ये दुनिया सिमटती ही जा रही
फासले कुछ इस तरह से बढ रहें है अब,
परछाईं अपने आप से अब दूर जा रही
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४
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