घोर निराशा
कभी कभी जब घोर निराशा,जीवन में आ जाती है!
सावन उमड़े बिन मौसम के,आखेँ तब भर जाती है!!
शबनम भी तब आग के गोलों जैसी, तन पे लगती है!
दिल कुछ डूबा सा रहता है, मायूसी छा जाती है!!
कोई न छेड़ें , कोई न बोले, जी तब ऐसा करता है!
तन्हाई के आँगन में जब, यादें फिर घिर जाती है!!
“”मुफलिस””थक कर चूर हुए हम,जाने कितना चलना है!
साँसे उखड़े सी लगती हैं, बैचैनी बढ़ जाती है!!
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
26/03/2013
कभी कभी जब घोर निराशा,जीवन में आ जाती है!
सावन उमड़े बिन मौसम के,आखेँ तब भर जाती है!!
शबनम भी तब आग के गोलों जैसी, तन पे लगती है!
दिल कुछ डूबा सा रहता है, मायूसी छा जाती है!!
कोई न छेड़ें , कोई न बोले, जी तब ऐसा करता है!
तन्हाई के आँगन में जब, यादें फिर घिर जाती है!!
“”मुफलिस””थक कर चूर हुए हम,जाने कितना चलना है!
साँसे उखड़े सी लगती हैं, बैचैनी बढ़ जाती है!!
ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
26/03/2013
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