दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Tuesday, July 15, 2014

कल भगवान स्वप्न में आये
बोले मुफ़लिस यार
तू भी मुफ़लिस,मैं भी मुफ़लिस
दोनों हैं बेकार
दोनों हैं बेकार,करें क्या
समझ न आता
देख धरा का हाल
हमारा जी घबराता
मैं बोला भगवन क्या लेगें
चाय लाऊं या कोला
वो बोले ले आओ धतूरा
या फिर भांग का गोला
भांग का गोला खाकर
प्रभू ने ऐसी ली अंगड़ाई
मेरी साधारण आखों को
दिव्य द्रष्टि दिलवाई
भगवन बोले,दिव्य द्रष्टि से
देख धरा का हाल
भाई-भाई का कत्ल कर रहा
अज़ब गज़ब है हाल
नारी की अस्मत के सौदे
यहां रोज़ ही होते
अपने कुकर्मों पापों को
गंगा जल से धोते
खुद रिश्वत लेते देते हैं
मुझको भी न छोड़ा
सवा किलो लड्डू की रिश्वत
कहीं नारियल फोड़ा
इंसानों का स्तर कितना
गिरता जाता भाई
वहशी और दरिंदे बन गए
बन गये हैं दंगाई
बन गए हैं दंगाई
लहू की खेलें होली
बात बात पे चलते चाकू
और चलती है गोली
मेरे ही मंदिर मे आकर
मुझको ही ठग जाते
मेरा मुकुट और जेव़र को
चोरी कर ले जाते
अब तक मेरा ही
कुछ भय था
वो भी रहा न बाक़ी
बेईमानी डंका बजता
गैरत रही ना बाक़ी
क्या- क्या मैं
दिखलाऊं तुमको
कुछ तो शरम करो
मेरी दिव्य द्रष्टि को
बेटा वापस तुरंत करो
मैं चलता हूं स्वर्ग लोक
तुम अपनी फिक्र करो
नर्क बनाओ इस धरती को
इसमें ऐश करो

ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
१५जुलाई २०१४, रातः१०.४५बजे

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