इत्तिफाकन वो अचानक मिल गये जब
बेइरादा बेजुबां से हो गए हम
थी शिकायत से भरी उनकी निगाहें
अनकहे शब्दों की भाषा पढ़ गए हम
मौन की अभिव्यकित्त पीडा से भरी थी
सांस रोके दर्द सारा पी गए हम
फिर धुंधलके यादों के छाने लगे थे
और ठगे से जड़ के जैसे हो गए हम
क्या बतायें,खेल क्या किस्मत ने खेला
वक्त से मजबूर कितने हो गए हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४, रात१०.४५
बेइरादा बेजुबां से हो गए हम
थी शिकायत से भरी उनकी निगाहें
अनकहे शब्दों की भाषा पढ़ गए हम
मौन की अभिव्यकित्त पीडा से भरी थी
सांस रोके दर्द सारा पी गए हम
फिर धुंधलके यादों के छाने लगे थे
और ठगे से जड़ के जैसे हो गए हम
क्या बतायें,खेल क्या किस्मत ने खेला
वक्त से मजबूर कितने हो गए हम
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
८ जून २०१४, रात१०.४५
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