अब आंसू को पलकों में यूं न छिपाओ
जमाने की खातिर,न यूं मुस्कराओ
हमें सब पता है ,तेरे दिल का आलम
न कोई बहाना अब हमसे बनाओ
ये उल्फत में कैसी सजा हमने झेली
न हम चैन पायें ,न तुम चैन पाओ
ये कैसा मकाम इस मोहब्बत में आया
न हम मुस्करायें,न तुम मुस्कराओ
कुछ तो कशिश है,मोहब्बत में अपनी
गुनाहों की मेरे. सजा तुम भी पाओ
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
४ जुलाई २०१४, प्रातः८ बजे
जमाने की खातिर,न यूं मुस्कराओ
हमें सब पता है ,तेरे दिल का आलम
न कोई बहाना अब हमसे बनाओ
ये उल्फत में कैसी सजा हमने झेली
न हम चैन पायें ,न तुम चैन पाओ
ये कैसा मकाम इस मोहब्बत में आया
न हम मुस्करायें,न तुम मुस्कराओ
कुछ तो कशिश है,मोहब्बत में अपनी
गुनाहों की मेरे. सजा तुम भी पाओ
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
४ जुलाई २०१४, प्रातः८ बजे
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