दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Tuesday, July 15, 2014

क्यों ?

रोज़ उठ्ता हूँ सुबह को, इक नई आशा के साथ
शाम होने तक चटक कर चूर हो जाती है क्यों ?
मंज़िलों की ओर जब हर कदम बढ्ता है तब
मंज़िलें मुझसे छटक कर दूर हो जाती है क्यों ?
फिर भी दिल में है जुनूँ, इक हौसला उम्मीद है
मंज़िलों की ओर,दिल में आग लग जाती है क्यों ?
हर मुक्ददर की इबारत लिखने वाला एक है, 
पर उसे पढने की हसरत मन में जग जाती है क्यों ?
कल सुबह सूरज की किरणें,फिर धरा पे आयेंगी
रात कितनी ही घनी हो, फिर से कट जाती है क्यों ?
हम अकेले ही चले थे, अब सुकूँ की चाह में
जाने कैसे साथ में ये भीड़ लग जाती है क्यों ?

ॠषि राज शंकर“मुफ़लिस”
09/02/2014

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