किससे दिल की बात कहूँ, उलझन और ज़ज़्बात कहूँ, ,
उजड़ा- उजड़ा हर मन्ज़र है, हर ज़र्रा खामोशी है,
तन्हा-तन्हा इन रातों की कैसी है बारात कहूँ,
रात अमावस जैसी काली, और सुबह का पता नहीं
उखड़ रही सांसों से कैसे, ये बोझिल लम्हात कहूँ !!!!!
उजड़ा- उजड़ा हर मन्ज़र है, हर ज़र्रा खामोशी है,
तन्हा-तन्हा इन रातों की कैसी है बारात कहूँ,
रात अमावस जैसी काली, और सुबह का पता नहीं
उखड़ रही सांसों से कैसे, ये बोझिल लम्हात कहूँ !!!!!
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