जब जिंदगी पे मेरी
मेहरबान हो गए
दिल में उतर के मेरे
दिलोजान हो गए
करनी थी बेवफ़ाई ही
जब इश्क में तुम्हें
क्यूं तुम हमारी मौत का
सामान हो गए
अब भूलना भी तुमको
तो आसान नहीं है
जिंदा तो हूं पर रुह में
मेरी जान नही है
उम्रे सफ़र कैसे कटे
तन्हाईयों में अब
जब रास्तों की जेहन में
पहचान नहीं है
इंसान अपनेआप में
कितना सिमट गया
बस जानवरों की भीड़ है
इंसान नहीं है
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२४ जुलाई २०१४, प्रातः ११ बजे
मेहरबान हो गए
दिल में उतर के मेरे
दिलोजान हो गए
करनी थी बेवफ़ाई ही
जब इश्क में तुम्हें
क्यूं तुम हमारी मौत का
सामान हो गए
अब भूलना भी तुमको
तो आसान नहीं है
जिंदा तो हूं पर रुह में
मेरी जान नही है
उम्रे सफ़र कैसे कटे
तन्हाईयों में अब
जब रास्तों की जेहन में
पहचान नहीं है
इंसान अपनेआप में
कितना सिमट गया
बस जानवरों की भीड़ है
इंसान नहीं है
ऋषि राज शंकर 'मुफलिस'
२४ जुलाई २०१४, प्रातः ११ बजे
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