जिंदगी जिस ओर ले
जाती रही चलता रहा
मैं तो दरिया सा हुआ
खामोश हो बहता रहा
घिर गया चहुँओर से
मै जिंदगी की जंग में
किंतु मैं अभिमन्यु बनके
योद्धा सा लड़ता रहा
जानता परिणाम हूँ कि
हार जाऊंगा मगर
मैं समय के मस्तकों
दस्तख़त करता रहा
साथ कोई दे या न दे
जिंदगी के इस सफर में
कभीअर्श पे,कभी फर्श पे
मैं दरबदर फिरता रहा
फिर कभी झंडा गडे़गा
और बुलंदी फिर मिलेगी
बस इसी विश्वास के ख्वाबों
के बीच पलता रहा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सांय:7 बजे 18/04/2018
जाती रही चलता रहा
मैं तो दरिया सा हुआ
खामोश हो बहता रहा
घिर गया चहुँओर से
मै जिंदगी की जंग में
किंतु मैं अभिमन्यु बनके
योद्धा सा लड़ता रहा
जानता परिणाम हूँ कि
हार जाऊंगा मगर
मैं समय के मस्तकों
दस्तख़त करता रहा
साथ कोई दे या न दे
जिंदगी के इस सफर में
कभीअर्श पे,कभी फर्श पे
मैं दरबदर फिरता रहा
फिर कभी झंडा गडे़गा
और बुलंदी फिर मिलेगी
बस इसी विश्वास के ख्वाबों
के बीच पलता रहा
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
सांय:7 बजे 18/04/2018
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