दिल की अभिव्यक्ति

दिल की अभिव्यक्ति
दिल की अभिव्यक्ति

Saturday, April 18, 2020


शिकस्त दरशिकस्त हम खाते रहे
फिर भी हर हाल में मुस्कुराते रहे
मेरी आवाज़ से उनको नफ़रत सी थी
उनपे गज़ले मग़र गुनगुनाते रहे
वो ना आये मगर मन्नतें कितनी की
फिर भी शिद्दत से उनको बुलाते रहे
हम तरसते रहे उनके दीदार को
वो दुपट्टे में मुखडा़ छिपाते रहे
ये मालूम है छुप छुप वो देखा किये
फिर भी मिलने से क्यूं कतराते रहे
जिंदगी इक तवायफ़ का कोठा हुई
नाचते हम रहे, वो नचाते रहे
वक्ते रूख़सत,अलविदा के समय
वो निगाहों में आँसू छिपाते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   सांय:7:30 बजे 26/05/2018

यूं ही हालात करवट बदलते रहे
हम न बदले मगर वो बदलते रहे
ना था मेरा कुसूर,और न कोई ख़ता
भीगते हम रहे ,वो बरसते रहे
तूफां,कई मर्तबा तो मेरे घर पे आये
हम भी बसते रहे फिर उजड़ते रहे
तुमको रुसवा करुं ऐसी मर्जी नही
इस वजह से लबों को हम सिलते रहे
ये और बात है कि अब भी खामोश हूं,
लेकिन सीने में शोले दहकते रहे
महफिलों में जाम जब कहीं भी चले
कुछ महकते रहे ,कुछ बहकते रहे
ऋषि राज शंकर 'मुफ़लिस'
   प्रात:7:30 बजे 28/05/2018

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